पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/३०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

फँसला न दे दें तबतक आपको धीरज रखना चाहिए। एक बार मजदूर अधीर हो गये थे; किन्तु आखिर उन्होंने अपने सलाहकारोंकी बात सुनी और हड़ताल स्थगित कर दी।

सेठोंने अनाजकी दुकानें खोलना स्वीकार किया था लेकिन वे ऐसा नहीं कर सके हैं। इस सम्बन्धमें जो कुछ मुझसे हो सकेगा मैं करूँगा। हमें अधीर होना उचित नहीं है। हमें हड़ताल एकदम नहीं कर देनी चाहिए। जो न्यायकी माँग करता है उसे राह देखनी चाहिए। हमने पंचोंसे मध्यस्थता कराना पसन्द किया है। इसलिए वे हमें जितना दें हमें उसे स्वीकार करना चाहिए। जो मजदूर, मजदूर संघ में शामिल नहीं हैं, सम्भव है उनको अधिक लाभ मिलेगा। यदि वे संघमें होते तो उनको वह लाभ शायद न मिलता।

हम कितनी ही बार जो कुछ मांगते हैं वह हमें मिल जाता है; किन्तु हमें अनुचित माँग नहीं करनी चाहिए। यदि हम अनुचित माँग करेंगे तो आज जो आक्षेप मालिकोंपर किया जाता है वही आक्षेप फिर हमपर किया जायेगा। उनके ऊपर आरोप यह है कि वे लोगोंके कष्टोंका अनुचित लाभ उठाते हैं। कपड़ेका भाव बढ़ानेका दूसरा अर्थ और क्या हो सकता है ? हमें उनके जैसा नहीं बनना चाहिए। हमारी माँगें उचित होनी चाहिए। मजदूरोंकी माँगें तो उचित ही होती हैं।

मजदूरों और मालिकोंका सम्बन्ध भागीदारोंके समान होना चाहिए। जैसा सम्बन्ध बाप और बेटेमें होता है वैसा ही सम्बन्ध मालिकों और मजदूरोंके बीच होना उचित है। जैसे बेटा बापके ज्ञान और अनुभवका लाभ उठाता है वैसी ही स्थिति मजदूरोंकी होनी चाहिए। मैं ऐसी स्थिति लानेका प्रयत्न कर रहा हूँ जिसमें मालिक मजदूरोंका शोषण न करें और न मजदूर मालिकोंको ठगें।

अब मैं वर्तमान स्थितिपर आता हूँ। जैसा सम्बन्ध पिता-पुत्रमें होता है वैसा ही सम्बन्ध राजा और प्रजामें होना चाहिए। किन्तु सरकारकी नीयत तो ऐसी ही है कि वह भारतको यथाशक्ति लूटना चाहती है। हमें इस सरकारसे कुछ नहीं मिल सकता। यदि कुछ मिल सकता है तो जैसे अली-भाइयोंको चुपचाप पकड़ लिया गया वैसा ही कुछ मिल सकता है। यह तो ऐसी स्थिति है जैसी मालिक और गुलाम के बीच होती है। हमें अली-भाइयोंको जेलसे छुड़ाना है। किन्तु हमें उनको सरकारसे गिड़गिड़ा कर नहीं छुड़ाना है, अर्जियाँ दे कर भी नहीं छुड़ाना है; बल्कि स्वराज्य लेकर उस स्वराज्यके द्वारा मिले अधिकारसे हमें उन्हें छुड़ाना है। अभी एक विद्यार्थीने जो गीत गाया उसमें जैसा कहा गया है उस तरह हमें उनकी जंजीरें खादीसे ही तोड़नी हैं। अब जो हजारों निर्दोष लोग जेल जायेंगे हमें उनको भी इसी तरह छुड़ाना है। यदि हम स्वदेशीको अपना लें तो यह कार्य कठिन नहीं है। किन्तु अभी तो हम विदेशी कपड़ेको त्यागने के लिए ही तैयार नहीं हुए हैं। मजदूरोंको तो खादी ही पहनना उचित है। मजदूर इतने अधिक गरीब नहीं हैं कि वे खादीका प्रयोग न कर सकें। उन्हें यह शिष्ट वेश ही पहनना चाहिए। वे स्वयं सूत कात सकते हैं, अपना चरखा रख सकते हैं, अपना करघा रख सकते हैं और अपने हाथसे खादी बुनकर पहन सकते हैं। जबतक वे ऐसा न कर सकें तबतक उन्हें मेरी तरह लंगोटी पहननी पड़े तो भी अच्छा है।