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यदि मैं पकड़ा जाऊँ तो ?

लगता है अथवा अरुचि होती है उसे वे तुरन्त करें और स्वराज्य प्राप्त करें। यदि हममें अभीतक कुछ विदेशी कपड़ेका मोह शेष है तो वे उसको निकाल दें, यह मेरी इच्छा है। आज तो लोग विदेशी कपड़ेमें से थोड़ा-सा ही जलाते हैं। मेरे बाद तो वे तत्काल अपने समस्त विदेशी कपड़ेकी होली कर दें। अगर ठीक कहें तो यह सब कार्य अली-भाइयोंकी गिरफ्तारीपर ही हो जाना उचित था। लोगोंने उसके बाद स्वदेशीकी प्रवृत्तिको बढ़ाया तो है, किन्तु पूरी तरह नहीं बढ़ाया।

मैं यह आशा अवश्य करता हूँ कि मेरे गिरफ्तार होनेपर सभी स्त्री-पुरुष और बालक जिन्होंने अबतक चरखा चलाना शुरू न किया हो, चरखा चलाने लग जायेंगे। मैं यह आशा भी अवश्य ही रखता हूँ कि वे अन्त्यजोंसे प्रेम करेंगे, उनका स्पर्श करेंगे और उनके दुःखदर्दमें शामिल होंगे।

मैं यह भी आशा अवश्य रखता हूँ कि अन्त्यज लोग अपने जीवनमें सुधार करेंगे, शराब पीना छोड़ देंगे, दूसरे दुर्व्यसनोंको भी छोड़ देंगे, मांसाहार न करेंगे और साफ-सुथरे रहेंगे। साथ ही वे सूत कातेंगे, खादी बुनेंगे और अपना गुजारा ईमानदारीसे करेंगे।

सब लोग अहिंसाका पालन करें और दूसरोंसे भी करायें।

हिन्दू मुसलमानोंके लिए और मुसलमान हिन्दुओंके लिए प्राण देनेके लिए तैयार रहें। वे एक दूसरेके धर्मका सम्मान करें और हिन्दू यह समझें कि खिलाफतकी रक्षा करना उनका धर्म है, और यह मानें कि खिलाफतके लिए स्वराज्यको भी टालना पड़े तो वे उसे टाल देंगे क्योंकि खिलाफतके बिना मुसलमानोंके लिए स्वराज्यका कोई अर्थ ही नहीं है।

कोई यह न समझे कि गांधी जेल गये इसलिए अन्धेरा हो जायेगा। ऐसा मानना धर्म नहीं है; ऐसा मानना तो कायरता है। यदि हम स्वराज्यके लायक हैं तो हमें किसी नेताकी जरूरत इतनी नहीं लगनी चाहिए कि उसके बिना काम ही नहीं चलेगा। हरएक व्यक्तिमें देशका हित समझनेकी और उसकी रक्षा करनेकी योग्यता होनी ही चाहिए।

तिसपर भी हमें किसी-न-किसीको नेता बनाना ही होगा। इसलिए जिसका विचार, जिसका तर्क और जिसका चरित्र अधिकतर लोगोंको पसन्द हो, हम उसको तुरन्त नेता बना सकते हैं। उसके साथ अनेक प्रसंगोंपर झगड़ा और वादविवाद भले ही हो, किन्तु उसे एक बार नेता बना लेनेपर हमें उसका पूरा अनुशासन मानना चाहिए और वह जैसा कहे वैसा करना चाहिये। जब हम यह जान लेंगे कि स्वराज्य किन साधनोंसे मिलेगा और खिलाफतकी सेवा कैसे होगी, तब हमें कोई परेशानी नहीं होगी। फिर हमारे लिए जानने योग्य और कोई बात नहीं रहती, केवल करनेका काम रह जाता है। भारत जैसा करेगा उसको वैसा फल मिलेगा।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ९-१०-१९२१