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१२०. गुजरातकी परीक्षा

मैंने अपनी यात्रामें गुजरातकी जो प्रशंसा सुनी है वह सच्ची है या झूठी यह देखने के लिए मैं गुजरातमें आ गया हूँ। गुजरातने सबसे पहले असहयोगको स्वीकार किया। मैंने तभी कहा था कि यदि एक गुजरात ही पूरा असहयोग कर सके तो उसको अवश्य स्वराज्य मिल जायेगा और भारतको भी स्वराज्य मिल जायेगा। मैं इस बातपर आज भी कायम हूँ। यदि स्वराज्य इस वर्ष नहीं मिलेगा तो मेरी लाज तो जायेगी ही, समस्त भारतकी लाज भी जायेगी। सबसे अधिक लाज तो गुजरातकी ही जानी है। "आपने शर्तका पालन नहीं किया, मैं क्या करूँ?" ऐसा कहकर मैं तो छुट्टी पा लूंगा; किन्तु गुजरात क्या कहेगा? गुजरातके लोग तो यही कह सकते हैं, "हमने प्रतिज्ञा की थी, किन्तु हम उसे पूरा नहीं कर सके। हम इसी योग्य हैं।" गुजरातको ऐसी लजानेवाली बात स्वीकार न करनी पड़े, इसका प्रयत्न प्रत्येक गुजरातीको करना चाहिए।

गुजरातकी प्रशंसा तो मैंने सुनी किन्तु मैं देखता हूँ कि गुजरातियोंने सरकारी पद नहीं छोड़े हैं। वकालत भी कुछ ही वकीलोंने छोड़ी है। हाँ, इनकी अपेक्षा विद्यार्थियोंने कुछ ठीक किया है।

तब गुजरातने वास्तवमें ऐसा क्या काम किया है जिसके लिए वह इतनी प्रशंसाका पात्र है?

यह काम स्वदेशीका प्रचार है। उसके स्वदेशी के प्रचारके सम्बन्ध में इतना ही कह सकते हैं कि दूसरोंकी तुलनामें उसने ज्यादा अच्छा काम किया है। इससे ज्यादा और उसके लिए क्या कहा जा सकता है? स्वदेशी एक ऐसी चीज है जिसमें हमारा विश्वास है। जबतक हरएक प्रान्त या जिला अपनी जरूरत के लायक सूत स्वयं नहीं कात लेता और कपड़ा नहीं बुन लेता और विदेशी कपड़ेका बहिष्कार नहीं करता तबतक स्वराज्य मिलना असम्भव है। इसलिए गुजरातको जो यश मिल रहा है वह स्वदेशीके कारण ही मिल रहा है, यही कहना उचित है।

दूसरी बात अस्पृश्योंके सम्बन्धमें है। इस सम्बन्धमें मैंने अपनी टिप्पणियोंमें संकेत किया है। हम इतना जरूर कह सकते हैं कि गुजरातमें अन्त्यज सभाओंमें बिना किसी बाधा आ सकते हैं। किन्तु क्या इससे कोई सन्तोष माना जा सकता है? हम अन्त्यजोंको छोड़कर स्वराज्यका विचार भी नहीं कर सकते। यह तो ऐसी बात होगी -- मानो हम अपने गुलामके तो मालिक बने रहना चाहते हों; किन्तु स्वयं अपने मालिककी गुलामीमें से छूटना चाहते हों। क्या ईश्वर कभी इसे सहन कर सकता है? यह कभी सम्भव है? क्या ये गुलाम स्वयं ही ऐसा सम्भव होने देंगे? और क्या हमारे मालिक स्वयं इतनी सावधानी न रखेंगे कि हमारे गुलामोंको अपनी ओर मिला लें और उन्हें हमसे भिड़ाये रखें? इसलिए हम गुजरातियोंको स्वयं ही यह विचार करना है कि