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गुजरातकी परीक्षा

क्या हम सचमुच स्वराज्य के लिए तैयार हो गये हैं ? क्या हममें उसके लिए पूरी योग्यता आ गई है?

मुझे मालूम है कि हमने तिलक स्वराज्य कोष संग्रह करनेमें अच्छा-खासा उद्योग किया है। हम सभाओंकी व्यवस्था भी ठीक कर सकते हैं। हमने शराबबन्दी के मामले में भी अच्छा काम किया है। हम देखते हैं कि हमने खादीका भी काफी प्रचार किया है। सामान्यतः देखें तो ये सब सोते हुए गुजरातकी जागृतिके सन्तोषप्रद लक्षण हैं। किन्तु जैसे कोई मनुष्य नदी पार करनेके लिए बल लगा कर तैरे; किन्तु वह अन्तमें किनारेके पास पहुँचकर बल न लगा सके तो डूब जाता है और फिर उसके बारेमें यही कहा जाता है कि वह पर्याप्त बल नहीं लगा सका। इसी तरह हमें सोचना है कि क्या हमने स्वराज्य लेनेके लिए पूरा जोर लगाया है। मैं इसका उत्तर हाँ या ना में नहीं दे सकता, क्योंकि अभी तो खादीके प्रचारका महीना समाप्त नहीं हुआ। इसकी समाप्ति तक तो हम बहुत कुछ कर सकते हैं। पहले इसकी अवधि सितम्बरतक रखी गई थी। वह समाप्त हो गई। इससे कोई हानि नहीं, क्योंकि वह तो मैंने एक आशा व्यक्त की थी। किन्तु हमें याद रखना चाहिए कि इसी बातको दिसम्बर में कांग्रेसने बहुत सोच-समझकर स्वीकार किया था। सितम्बरसे दिसम्बरतक हमने इतनी प्रगति की थी कि प्रतिनिधियोंने इसकी शक्यतापर विश्वास करके एक वर्षकी अवधि निश्चित कर दी। इसलिए लोगोंकी प्रतिज्ञा तो दिसम्बरसे मानी जायेगी। और गुजरातने अबतक जो कुछ किया है उसको देखते हुए ढाई मासमें वह जोर लगा दे और इस कार्यको पूर्ण कर दे तो कोई आश्चर्यकी बात नहीं होगी। हाँ, यदि वह जोर न लगाये और इसे पूरा न करे तो यह दुःखकी बात अवश्य होगी।

मुझे बताया गया है कि गुजरातके लोग जेल जाने के लिए तैयार हैं और उनमें से कुछ तो फाँसीसे भी न डरेंगे। गुजरात अहिंसाका पालन तो अन्ततक करेगा ही, किन्तु यह अभी देखना शेष है। सच पूछो तो हमारे सम्मुख पिछले बारह वर्षोंमें जेल जानेका अवसर तो आया ही नहीं है। किन्तु इसमें दुःखकी बात नहीं है। हम नीति-नियमोंका उल्लंघन करके जेल जाना नहीं चाहते। हमारी मानसिक तैयारी जेल जाने की है, अभी इतना ही पर्याप्त है।

किन्तु हम जेल जानेकी तैयारीका अर्थ समझ लें। हम निरपराध हों तो जिस दिन जेल जायें उस दिनको शुभ मानें। हमारे सगे सम्बन्धियों और प्रियजनोंको भी हमारे जेल जानेपर दुःख मानने या रोने-धोनेका कोई कारण नहीं रहता। हमें जेलके कष्टोंको सुख समझने के लिए तैयार होना चाहिए।

फिर जेलकी तैयारीका अर्थ यह है कि यदि हमारे घर-द्वार बिकें तो भी हम चिन्ता न करें। मैंने ऐसे "वीर" भी देखे हैं जिनका कहना है, हम जेल तो जायेंगे; किन्तु अपना घर-द्वार न बिकने देंगे। यदि घर-द्वार जाये तो हम यह सहन नहीं कर सकते। यह स्थिति तो जेल जानेकी तैयारीकी सूचक नहीं है। अन्यायी राज्यमें अधिकांश लोगोंके पास माल-मिल्कियत हो ही नहीं सकती। उसका भोग इनेगिने लोग ही कर सकते हैं और वे प्रायः अन्यायी के सहयोगी होते हैं, अथवा संकटके समय