पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/३११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७९
टिप्पणियाँ

शान्ति ही आन्दोलन है

ईश्वरके मौनको कौन पहुँच सकता है ? और फिर, उसकी क्रिया-बहुलताको भी कौन पा सकता है? वह तो अँगड़ाई लेनेकी भी फुरसत नहीं चाहता; और न नींद ही लेता है। हमारे सो जानेपर भी वह जागता ही रहता है। काममें लगा हुआ वह न खाता है, न पीता है। क्या उसके कभी विश्राम लेनेकी बात भी सोची जा सकती है ? उसकी गतिकी तो कोई सीमा ही नहीं है? उसे आराम बदा ही नहीं है; उसे आरामकी दरकार भी कहाँ है? और इन अनन्त क्रियाओंको करते हुए उससे भूल नहीं होती। इस अनोखे स्वराज्यवादीने भूल करनेका अधिकार अपनी ही मर्जीसे छोड़ रखा है। अगर इससे हम लेश भी सीख लें तो बातकी-बातमें स्वराज्य ले सकते हैं। शान्ति रखते हुए भी यह अधिकसे-अधिक काम करता है। इससे हम यह सबक क्यों न लें कि शान्तिमें ही अधिसे-अधिक शक्ति है? सरकार जो जीमें आये सो शौकसे करे, जो बकना हो, बका करे -- हम तो बस अपना कर्त्तव्य ही करते चले जायेंगे। यही है कानूनका विवेकपूर्ण पालन और विवेकपूर्ण भंग।

शान्तिका अर्थ

इस दिव्य शान्तिका अर्थ जड़ता, अज्ञानका अन्धकार अथवा असामर्थ्य नहीं है। यह तो शुद्ध चेतना, ज्ञान और शूरवीरता है। जो अपनी कायाको पत्थर बनाकर रहता है वह एक ही जगह बैठे हुए सारे संसारको हिलाया करता है। पत्थरको कौन मार सकता है? पत्थरको चाहे चकनाचूर कर डालिए, पर वह कभी माफी नहीं माँगेगा। तुम चाहो कि वह तुम्हारा घर बनाने में जुट जाये तो यह भी नहीं हो सकता। तुम उसे चाहे जितनी चोट पहुँचाओ वह तुम्हारी गुलामी नहीं करेगा; और तुम थक जाओगे। जिस मनुष्यने अपने शरीरको पत्थर बना लिया हो उसको इस दुनियामें कौन परास्त कर सकता है। मनुष्यमें पत्थर और ईश्वर दोनोंका योग होता है। मनुष्य क्या है, चेतनामय पत्थर है। इसीसे हमारे शास्त्र हमें यह शिक्षा देते हैं कि जिसने पूरी तरह अपना देह-दमन कर लिया है, पूरी विजय उसीकी है। इस तरह शान्तिका अर्थ है देह-दमन। हमने खुदको अपनी कायाका, शरीर सुखका गुलाम बना लिया है; इसीलिए हमें सरकारका भी गुलाम होना पड़ा है। अब अगर हम अपनी कायाको जीत लें तो इस गुलामी के फेरसे छूट जायें। हम जितना ही अधिक शरीरके मोहका त्याग करेंगे उतनी ही अधिक स्वतन्त्रता प्राप्त करेंगे।

सरकार हमें क्या दबायेगी? अगर हम उससे कुछ भी लाभ न चाहें तो फिर वह क्या कर सकती है ? अगर हम उसके रुपये-पैसे, उसकी व्यवस्था और सुख-सुविधाओंसे कोई सरोकार न रखें तो हम गुलामीसे आज ही मुक्त हो सकते हैं।

शान्तिपर अमल

अलबत्ता हर एक आदमी पूर्ण शान्तिका पालन नहीं कर सकता; प्रत्येक मनुष्य अपनी कायाको पत्थरकी तरह नहीं बना सकता। इसलिए हम समाजमें रहकर थोड़ी-बहुत शान्तिका पालन करते हुए थोड़ा-बहुत सुख प्राप्त कर लेते हैं। स्वदेशीके