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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पालन में हमने इस अल्प देह-दमनका मार्ग पाया है; और कोई कारण नहीं है कि छोटे-बड़े सभी लोग इतना भी त्याग न कर सकें। थोड़ी देर कातना और बुनना लोगोंको किसी भी तरह भारी नहीं जायेगा। इसीलिए चरखा हिन्दू-मुसलमानकी एकताका चिह्न है; यह एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा हमें यह बोध हो जाता है कि हम मद्रासी, कन्नड़ी, बंगाली, मराठी, पंजाबी, सिन्धी सब भाई एक हैं। इस बातका ज्ञान रखते हुए भी जो चरखा तो नहीं कातता पर स्वराज्य माँगनेके लिए हाथ पसारता है, वह भिखारी है। उसे स्वराज्य माँगनेका कोई हक नहीं है। भिखारीको स्वराज्य कदापि नहीं मिलता। इसलिए जो लोग स्वराज्य चाहते हों उन्हें चाहिए कि वे चुपचाप ज्ञानपूर्वक हमेशा ईश्वरका नाम लेते हुए अपने मुल्कके खातिर सुवर्णमय सूत कातें। जब प्रत्येक हिन्दुस्तानी, जैसा कि वह अपने ही घरका पका हुआ खाना खाता है, अपने ही घरके कते सूतसे कपड़ा बुनने लगेगा, अथवा अपने पड़ौसीसे बुनवाकर पहनने लगेगा, इसके सिवा और कोई कपड़ा न पहनेगा उसी दिन स्वराज्य तैयार है; उसके पहले हरगिज नहीं।

यह एक बालककी शक्ति से भी बाहर नहीं है, इस बातसे कौन इनकार कर सकता है, और इससे अधिक आसान दूसरी कोई शर्त हो भी क्या सकती है ? हमने खुद ही इसे कठिन बना लिया है और फलस्वरूप तकलीफें उठाते हैं, अकालसे पीड़ित होते हैं, छुआछूतसे दुःखी होते हैं और हिन्दू-मुसलमान एक दूसरेको अपना दुश्मन मानते हैं।

एक आदर्श

हासोट (गुजरात) में एक डाक्टर हैं। वे तथा उनकी धर्मपत्नी रोज कमसे-कम तीन घंटा कातते हैं। डाक्टरको चरखा कातना सीखे अभी चार ही महीने हुए हैं। दो ही महीनोंके अभ्याससे वे ३० नम्बरका सूत कातने लगे हैं। दो महीने में उन्होंने इतना सूत काता कि उससे उनके दो कुर्ते बन गये और फिर भी कुछ कपड़ा बच रहा। वे अपने इसी सूतके बने कुर्ते पहनते हैं। बचा हुआ टुकड़ा उन्होंने बड़े प्रेमके साथ मुझे दिया। इस टुकड़ेको मैं अपने साथ रखता हूँ और जहाँ-तहाँ बड़े हर्षके साथ लोगोंको दिखाता हूँ। उनकी धर्मपत्नी तो और भी महीन सूत कातती हैं। डाक्टर साहब अगर अपना प्रयत्न जारी रखें तो एक वर्षमें २५ गज़ महीन खादी के लायक सूत कात लेंगे। और इतना कपड़ा एक आदमीकी एक सालकी आवश्यकतासे ज्यादा ही है।

रुईका संग्रह

भाई लक्ष्मीदास पुरुषोत्तमने रुईके सम्बन्धमें जो चेतावनी दी है उसकी ओर मैं पाठकोंका ध्यान खींचता हूँ। उन्होंने बताया है कि रुईके दाम बढ़े हैं और अभी बढ़ते जा रहे हैं। कोई कहता है कि रुईके दाम बढ़नेका कारण रुईका सट्टा है। लेकिन मेरे एक परम मित्र के अनुसार उसका कारण यह है कि इस वर्ष अमेरिकामें रुई कम पैदा हुई है। सत्य इन दोनोंके बीचमें है। दाम बढ़नेका कारण अमेरिकामें रुईका कम होना और यहाँ उसका सट्टा, दोनों हैं। मान लीजिए कि कल मेरे पास