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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिए लोगोंके पास पैसा नहीं है और वे पैसा कमा सकें ऐसा कोई काम उनके पास नहीं है। सरकारने सड़कें बनाने या सुधारनेका यानी पत्थर ढोने और फोड़नेका काम शुरू किया है लेकिन उसमें बहुत ही थोड़े लोग जा सकते हैं। इस काममें स्त्रीको बहुत हुआ तो ५ पैसे और पुरुषको ८ पैसे मिलते हैं। इसके सिवा, मजदूरी तीन आने ही क्यों न हो उन्हें प्रति आना एक पैसा दस्तूरीके रूपमें मुकादमको तो देना ही पड़ता है। इस प्रदेशमें तीस वर्ष पहले लोग कातने और बुननेका काम करते थे। आज भी स्त्रियाँ उसे भूली नहीं हैं। ताड़पत्री गाँवमें मैंने अन्त्यज स्त्रियोंको कांग्रेस कमेटीके मकानमें अच्छी तरह कातते हुए देखा। इन स्त्रियोंको आठ घंटा कताईकी मजदूरी तीन आना मिलती है और ये तीन आने उन्हें पूरे मिलते हैं; कोई दस्तूरी नहीं देनी पड़ती, कोई बदमाश उनपर कुदृष्टि नहीं डाल सकता। इस तरह वे पत्थर फोड़नेवालोंकी अपेक्षा अधिक कमाती हैं। इस इलाकेके हजारों स्त्री-पुरुषोंने चरखेका पुनरुद्धार करने के लिए मुझे आशीर्वाद दिया। यदि हर जगह कांग्रेस कमेटियाँ अपना काम पूरा करें तो आगामी वर्ष अकाल नहीं होगा। महँगाई तो होगी लेकिन लोग कातकर और बुनकर अनाज अवश्य खरीद सकेंगे।

सरकारका द्वेषपूर्ण व्यवहार

एक परम मित्र कहते हैं कि जो लोग असहयोगकी निन्दा करते हैं वे यह भूल जाते हैं कि इतने वर्षतक यह सरकार हमारी सभ्यता के साथ, हमारी भाषाके साथ और हमारी जातिके साथ असहयोग ही तो करती रही है और अब यदि हम इस सरकारसे असहयोग नहीं करते तो हमारे जैसा बुद्धिहीन कोई नहीं होगा। सरकार हमारे साथ उक्त असहयोग आज भी कर रही है, उसका एक ताजा और द्वेषपूर्ण उदाहरण सेठ गोदरेज के प्रति उसके हालके व्यवहारमें मिलता है। इस उदार और दानी व्यक्तिने तिलक स्वराज्य कोषमें, केवल अस्पृश्योंके लिए और शराबबन्दी के काम के लिए, काफी पैसा दिया है, इसलिए सरकारने एक गुप्त गश्ती चिट्ठी जारी की है कि किसी भी सरकारी विभागके लिए गोदरेजकी तिजोरियाँ न खरीदी जायें। एक ऐसा समय था जब सरकारी कार्यालयों में ये तिजोरियाँ खासी संख्या में ली जाती थीं लेकिन सेठ गोदरेजने तिलक स्वराज्य कोषमें दान दिया इसलिए 'न्यायी' सरकारने उनकी तिजोरियोंके बहिष्कारका फरमान निकाल दिया। ऐसी दुष्ट और द्वेषपूर्ण सरकारसे जनता असहयोग न करे तो और क्या करे?

दीवाली

दीवालीके दिन रामकी विजयका उत्सव मनाया जाता है। रामकी विजयका अर्थ है धर्मकी विजय। धर्मकी विजयका उत्सव तो धर्मका पालन करनेवाले ही मना सकते हैं। उसे वही राष्ट्र मना सकता है, जो अपने स्वाभिमानकी रक्षा करता हो और स्वाश्रयी हो। इसलिए मैं तो ऐसा समझता हूँ कि हमारा कर्त्तव्य है कि जबतक हमें स्वराज्य नहीं मिल जाता तबतक दीवाली के इन दिनोंमें हमें किसी प्रकारका आमोद-प्रमोद नहीं करना चाहिए और न मिष्टान्न भोजन करना चाहिए। जिस समय अपने धर्म और देशकी सेवाके लिए हजारों निर्दोष लोग जेल गये हुए हों उस समय