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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैंने सुना है कि इस सम्बन्ध में पुजारीको बकरेका वध करनेसे रोकने के लिए निषेधादेश भी निकलनेवाला है। लेकिन यह आदेश निकले या न निकले, उससे हमारा कोई सम्बन्ध नहीं है।

जो लोग अपनेको हिन्दू मानते हैं, वे ऐसे प्राणिवधमें कोई सहयोग नहीं दे सकते। मेरी दृढ़ मान्यता है कि धर्मके नामपर किसी प्राणीका वध करना अधर्म है। जिस मन्दिरमें ऐसा वध होता है वह मन्दिर ही नहीं है। ऐसे किसी भी मन्दिरमें हिन्दुओंको जाना ही नहीं चाहिए। कालीमाता पशुवध नहीं चाहती। वह तो हमारा ही बलिदान चाहती है। अपने पापका, अपनी मलिनताका वध करके ही हम कालीमाताके समक्ष खड़े हो सकते हैं। जो हिन्दू अष्टमीका होम करना चाहते हैं उनसे मैं कहता हूँ कि आप लोग हाथके काते हुए सूतकी खादी पहनकर सत्यका, अहिंसाका और इन्द्रिय-संयमका व्रत लीजिए।" मुझे विश्वास है कि जो लोग ऐसा करेंगे वे शुद्धतम बलिदान करेंगे। इतना ही नहीं वे स्वराज्य के योग्य भी बनेंगे। इसलिए मुझे आशा है कि यदि यह पुजारी बकरेका वध करनेकी अपनी हठेपर कायम रहता है तो कोई भी हिन्दू उस मन्दिरमें जाकर और प्राणिवधके इस पापमें सहयोगी होकर ईश्वर की निन्दा करने के पापका भागी नहीं होना चाहेगा। शनिवार आश्विन सुदी ७ (८ अक्तूबर, १९२१)

[ गुजरातीसे]
नवजीवन, ९-१०-१९२१

१२२. भाषण : बम्बईमें कार्यसमितिके प्रस्तावके सम्बन्ध में

९ अक्तूबर, १९२१

श्रीमती नायडूने सभाकी अध्यक्षता की और सभाके सम्मुख प्रस्ताव महात्मा गांधीने रखा। प्रस्तावका समर्थन लाला लाजपतराय, मौलाना आजाद सोबानी, बाबू राजेन्द्रप्रसाद, आदि नेताओंने किया . . . । प्रस्ताव कराची प्रस्तावसे मिलता-जुलता था। उसे सब लोगोंने खड़े होकर मंजूर किया। उसके बाद महात्मा गांधीने विदेशी कपड़ोंके हरमें आग लगाई और वह पटाखोंकी आवाजके साथ और आगकी लपटों में जल उठा।

महात्मा गांधीने प्रस्ताव रखा :

बम्बई में इसी ५ तारीखको हुई बम्बईके नागरिकोंकी यह सभा कांग्रेस कार्यसमितिकी बैठक में स्वीकृत किये गये निम्न प्रस्तावका समर्थन करती है :

कार्य समिति अली-भाइयों और उनके साथियोंको जेल जानेपर बधाई देती है और इस सरकारके अधीन फौजमें नौकरी करनेके सम्बन्धमें कराचीके खिलाफत सम्मेलनके प्रस्तावपर विचार करने के पश्चात् कार्य समिति यह सम्मति