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भाषण : बम्बई में कार्यसमितिके प्रस्तावके सम्बन्ध में

प्रकट करती है कि इस प्रस्ताव में तत्त्वतः उसी सिद्धान्तका समर्थन किया गया है जिसे कांग्रेसने अपने कलकत्ताके विशेष अधिवेशनमें और पिछले वर्ष नागपुरके सामान्य अधिवेशन में निर्धारित किया था। इस प्रस्तावमें कहा गया है कि इस सरकारकी किसी हैसियत में नौकरी करना भारतीयोंके राष्ट्रीय सम्मान और राष्ट्रीय हितके विरुद्ध है; क्योंकि सरकारने हमारे सैनिकोंका उपयोग मिस्त्रियों, तुर्की, अरबों और अन्य राष्ट्रोंकी राष्ट्रीय भावनाको कुचलने के लिए किया है। कार्य-समितिने कांग्रेसकी ओरसे सैनिकों और असैनिक कर्मचारियोंको नौकरी छोड़नेका निर्देश इसलिए नहीं किया है कि सरकारी नौकरी छोड़ने और अपनी आजीविकाका साधन ढूंढने में असमर्थ ऐसे लोगोंके भरण-पोषणका भार लेनके लिए कांग्रेस अभी तैयार नहीं है। किन्तु कार्य-समितिकी राय है कि कांग्रेसके असहयोग सम्बन्धी प्रस्तावकी भावना के अनुसार सभी कर्मचारियोंका, फिर चाहे वे सैनिक हों या असैनिक, यह कर्तव्य है कि उनमें से जो लोग कांग्रेसकी सहायता के बिना अपना निर्वाह कर सकते हों वे अपनी नौकरी अवश्य छोड़ दें।

कार्य समिति समस्त भारतीय सैनिकों और पुलिसके सिपाहियोंका ध्यान इस तथ्यकी ओर आकर्षित करती है कि थोड़े ही समयतक प्रशिक्षण लेनेके बाद रुई धुनने, सूत कातने और हाथसे कपड़ा बुननेसे उनको स्वतन्त्र आजीविकाका एक सम्मानपूर्ण साधन मिल सकता है। कार्य समितिको राय यह भी है कि ऊपर बताये गये कराचीके प्रस्तावके सिलसिले में लोगोंपर मुकदमा चलाने और सजा देनेके जो कारण बताये गये हैं उनसे लोगोंकी धार्मिक स्वतन्त्रतामें अनुचित हस्तक्षेप होता है।

इस प्रस्तावको प्रस्तुत करते हुए, महात्मा गांधीने कहा :

प्रस्तावके दो भाग हैं। पहला भाग कराचीवाले प्रस्तावके सम्बन्धमें है और उसका उद्देश्य राष्ट्रीय दृष्टिकोणसे उस प्रस्तावका समर्थन करना है। और यदि प्रस्तावका समर्थन करना अली-भाइयों और उनके साथी कैदियोंके लिए अपराध है तो वह मेरे लिए और इस सभा में प्रस्तुत श्रोताओंके लिए भी अपराध है, जिनकी ओरसे यह प्रस्ताव रखा जा रहा है और स्वीकार किया जा रहा है। मैं सैनिकोंको यह बतलाना अपना कर्त्तव्य मानता हूँ कि जिस सरकारने देशका विश्वास खो दिया है, उसकी सहायता करना अनुचित है। मुझे बताया गया है कि लोग इस प्रस्तावको एक वकीलको चतुराईसे बनाया हुआ बताते हैं जिससे कानूनकी पकड़से बचा जा सके। यह कहा गया है कि यह प्रस्ताव खिलाफत सम्बन्धी प्रस्ताव जैसा नहीं है और इसमें सैनिकोंको हथियार डालनेके लिए कहना सभीके लिए अनिवार्य नहीं है। इस रायसे मेरा मतभेद है। मेरी राय यह है कि जो भी व्यक्ति इस प्रस्तावका समर्थन करते हैं वे सैनिकोंसे कहते हैं कि यदि वे किसी अन्य साधनसे अपना निर्वाह कर सकें तो सरकारकी