पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/३१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नौकरी छोड़ देना उनका कर्त्तव्य है। यदि मेरी वाणी सैनिकोंतक पहुँच सके, तो मैं उनसे अवश्य ही कहता हूँ कि वे चाहे हिन्दू हों या मुसलमान, यदि अपने धर्म और देशमें उनका विश्वास है तो वे इस नौकरीको छोड़ दें, फिर चाहे उन्हें पत्थर तोड़कर भी अपनी जीविका क्यों न कमानी पड़े। जो मनुष्य भारतका सैनिक बनना चाहता है वह इस सरकारका, जिसने भारतका अहित किया है, सैनिक नहीं बन सकता। जिन लोगोंने जलियाँवाला बाग में निर्दोष लोगोंकी हत्या की वे सैनिक नहीं हैं, बल्कि पशु हैं। जो लोग बिना कोई खतरा उठाये केवल हत्या करते हैं, वे लोग सैनिक नहीं होते, पशु होते हैं। इसलिए मुझे इस सभाकी ओरसे सिपाहियोंसे यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि यदि उन्हें देश और धर्मका कुछ भी ध्यान है तो वे इस सरकारसे सम्बन्ध तोड़ने में एक क्षण भी न खोयें।

प्रस्ताव में एक बातका निषेध किया गया है और वह है गुप्त प्रचार। अहिंसाकी पुस्तक में से गोपनीयता निकाल दी गई है। हम जिस बातको खुल्लमखुल्ला कहनेके लिए तैयार नहीं, उसे गुप्त रूपसे कहने में हमें शर्म आती है। इसलिए यदि सरकार असहयोगके ध्येय और सिद्धान्तके पठनको अपराध मानती है, तो मैं उससे कहता हूँ कि वह आज ही इस सायंकालीन सभाकी कार्रवाईमें भाग लेनेवालोंको गिरफ्तार कर ले। यदि सैनिकोंसे यह कहना अपराध है कि धर्म और राष्ट्रीय हितको दृष्टिसे उनके लिए सरकारकी नौकरी करना अवैध है, तो मैं सरकारसे कहता हूँ कि वह मुझे गिरफ्तार कर ले और जिन लोगोंने इस प्रस्तावका समर्थन किया और इसे मंजूर किया है उन्हें भी पकड़ ले।

प्रस्तावके दूसरे भागमें सैनिकों को सम्मानपूर्वक आजीविका कमाने का मार्ग बताया गया है। उसमें स्वदेशीका उल्लेख है। मैं श्रोताओंसे कहता हूँ कि यदि उनको विश्वास न हो कि स्वदेशी वस्तुओंका प्रयोग लाभप्रद है और चरखमें देशकी गरीबी दूर करनेकी शक्ति है, तो वे इस प्रस्तावको स्वीकार न करें। प्रस्तावमें सैनिकोंसे कहा गया है कि वे रुई धुनकर और कपड़ा बुनकर अपनी आजीविका कमा सकते हैं। मैं मौलाना मुहम्मद अलीकी तरह सचमुच यह विश्वास करता हूँ कि हमें गोलियों और बारूदकी जरूरत नहीं है। सूतके गोले हमारी गोलियाँ है, और चरखे हमारी बन्दूकें। मैंने पिछले सितम्बर में कहा था कि यदि हम कुछ शर्तोंको पूरा कर लें तो बारह महीने में स्वराज्य लेना और खिलाफत और पंजाबके अन्यायोंका प्रतिकार कराना हमारे लिए सम्भव है। बारह महीने तो बीत गये; किन्तु स्वराज्य नहीं मिला। इसमें दोष हमारा ही है। हमने काम बहुत किया है, किन्तु हमसे जो न्यूनतम शर्तें पूरी करनेकी अपेक्षा की गई थी वे पूरी नहीं हो सकीं। इस दोषमें में अपने को भी शामिल मानता हूँ।

मुझे दुःख है कि मुझमें प्रत्येक वकीलको यह समझानेकी शक्ति नहीं है कि जिन अदालतोंसे न्याय नहीं मिलता उनमें वकालत करना अनुचित है। मुझे दुःख है कि