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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्या वे नीचे लिखे दो मुद्दोंका स्पष्टीकरण करनेकी कृपा करेंगे?

(१) आपने श्री भगवानके चरणोंमें अपना मन, वचन, कर्म, अर्थ और प्राण अर्पित कर दिया है। क्या आप चाण्डालको स्पर्श करके स्नान करेंगे ? ऐसे चाण्डालके स्पर्शसे आप पवित्र होंगे या अपवित्र? यदि वह भगवानके मन्दिरमें आना चाहे तो आप उसे प्रवेश करने देंगे या नहीं?

(२) आपका पाखाना साफ करनेवाला भंगी दोपहर बाद दो बजे नहा-धोकर, बहुत साफ होकर आपके घर आये तो आप उसे प्रवेश करने देंगे और अपनी बैठक में बैठने देंगे कि नहीं?

मैं यह मानता हूँ कि इन दोनों मुद्दोंके स्पष्टीकरणमें अस्पृश्यता-सम्बन्धी समस्त चर्चा पूरी हो जायेगी।

शास्त्रीजीके लेखका अर्थ मैं तो एक ही कर सकता हूँ। फिर भी यदि शास्त्रीजी उसका उत्तर देंगे तो मैं उसे अवश्य प्रकाशित करूँगा। तबतक मैं श्री साकरलालको सावधान कर देना चाहता हूँ कि शास्त्री वसन्तरामके निर्णयसे ही अस्पृश्यताके सम्बन्धमें होनेवाली चर्चा समाप्त नहीं हो जायेगी। शास्त्रीजीका उत्तर हमारी आशाके अनुरूप हो तो भी दीर्घकालसे जमा हुआ यह मैल एक-दो बारकी चर्चा-मात्रसे दूर नहीं होगा। यह मैल तो केवल कार्य करनेसे ही दूर होगा। हममें से जो लोग यह समझते हैं कि किसीको भी स्पर्श करनेसे पाप नहीं लगता, और शरीर शुद्ध करके आये हुए भंगीको स्पर्श करनेके बाद नहाना पाप है, वे भंगी आदि अस्पृश्य वर्ग के लोगोंकी सेवा करते हुए समय-समयपर उनका स्पर्श करेंगे तभी उनका यह मैल दूर होगा। वैसे ऐसा कहने और माननेवाले लोग तो तब भी रहेंगे कि सौ पीढ़ियाँ बदल जानेपर भी अन्त्यजका स्पर्श करना पाप है। ऐसे लोगोंको हम विनयपूर्वक किन्तु उतने ही आग्रहपूर्वक किये गये अपने आचरण से एवं उसके शुभ परिणामोंसे जीत सकेंगे।

मैं तो, जिस तरहकी अस्पृश्यता इस समय व्यवहारमें आ रही है उसको पाप रूप मानकर उसका त्याग करनेका आग्रह धर्मकी दृष्टिसे ही करता हूँ। किन्तु स्वामी श्रद्धानन्दजीने[१] अपने एक पत्र में लिखा है कि उत्तर भारतमें कितने ही अंग्रेज अन्त्यजवर्गको असहयोगके विरुद्ध भी भड़का रहे हैं। और यदि भारतमें सर्वत्र हमने अस्पृश्यताका विरोध न किया होता तो इस समय हमारे विरोधियोंने उसका बहुत दुरुपयोग किया होता। शैतान हमेशा एक छेदसे होकर घुसता है और फिर ऐसा बड़ा दरवाजा अपने आने-जानेके लिए बना लेता है जिसे सभी देख सकें। जिसे अपने जीवनका निर्माण धार्मिक दृष्टिसे करना है वह तो अपने धर्मके दुर्गमें एक भी कमजोर ईंट नहीं लगने देगा।

[ गुजरातीसे]
नवजीवन, २१-८-१९२१
  1. (१८५६-१९२६ ); राष्ट्रवादी नेता; संन्यास लेनेके पूर्व महात्मा मुन्शीरामके नामसे प्रसिद्ध; गुरुकुल कांगड़ीके संस्थापक।