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२. टिप्पणियाँ

बिहारका दौरा

चम्पारनमें जो कुछ सेवा मुझसे बन पड़ी है उसके तथा बिहारियोंके स्वभावके कारण मेरी बिहार-यात्रा बहुत-कुछ कष्टप्रद हुई। छोटे-छोटे गाँवोंमें भी झुण्डके-झुण्ड लोग चरणस्पर्शके लिए एकत्र होते थे और इतना कोलाहल होता था कि मैं तो घबरा जाता था। 'दर्शन' के मारे जरा भी फुरसत नहीं मिलती थी। इससे न रातको शान्ति मिलती थी, न दिनको। फिर घूमने-फिरनेकी तो बात ही दूर रही। यदि थोड़े ही, परन्तु कुशल कार्यकर्त्ता हों तो भी ऐसे श्रद्धालु लोगोंसे अभीष्ट काम लिया जा सकता है। और बिहार ऐसा काम करके दिखा रहा है। बिहारमें कितने ही कार्यकर्त्ताओंका जीवन इतना सादा और पवित्र है और शान्तिमय असहयोगपर उनका विश्वास इतना पक्का है कि समाजपर उनका गहरा प्रभाव जम गया है और उन्होंने शान्तिपूर्वक बहुत काम किया है। एक वर्ष पहले जहाँ बहुत थोड़े चरखे चलते थे वहाँ आज हजारों घरोंमें चल रहे हैं। हजारों गज खादी बुनी जा रही है और हजारों लोगोंने केवल खादी ही पहनना अखत्यार कर लिया है।

यह दो आना रोज मजदूरी देनेवाला चरखा बिहार, उड़ीसा इत्यादि प्रान्तोंमें कितने ही लोगोंकी सम्पूर्ण आजीविकाका साधन हो गया है। खेतोंपर काम करनेवाले बहुतसे मजदूर भी इतनी मजदूरी नहीं पाते। खेतोंपर काम करनेके लिए शरीर मजबूत होना चाहिए। पर चरखेको तो एक कोमलांगी बालिका भी चला सकती है और चाहे तो उससे दो आना रोज पैदा कर सकती है। लोगोंपर चरखेका जैसा असर हो रहा है वैसा असहयोग के दूसरे अंगोंका नहीं पड़ा। कितने ही लोग तो चरखेको एक बरकत देनेवाली चीज समझते हैं और उसकी पूजा करते हैं। हिन्दू और मुसलमान दोनों चरखेको एक दृष्टिसे देखते हैं और दोनों ही को वह प्रिय हो गया है। ऐसी दशामें यदि चरखा सब जगह न फैल जाये और ३० सितम्बरके पहले उसके द्वारा हम आवश्यक कपड़ा न तैयार कर सकें और विदेशी कपड़ेका बहिष्कार न कर सकें तो कहना होगा कि इसका कारण केवल हमारी संगठनशक्ति और कार्यदक्षताकी कमी ही होगी।

बुनकरों की सभा

बिहार-शरीफ नामका एक छोटा शहर बिहार में है। उसकी आबादी कोई पच्चीस हजार है। उसके पास ही प्रसिद्ध जैन तीर्थंकर महावीर स्वामीका जन्म हुआ था और उसीके पास वे समाधिस्थ हुए थे। उस स्थानपर बड़े विशाल मन्दिर हैं। बिहार-शरीफ जाते हुए ये रास्ते में पड़ते हैं। यह एक मशहूर पीरका स्थान है, इसलिए शरीफ कहलाता है। कहते हैं कि अजमेर के पीरके बाद, दूसरे नम्बरपर इसी स्थानकी महिमा है। यहाँ कोई ५०० जुलाहे-- बुनकर बसते हैं। इनमें मुसलमान ही ज्यादा हैं। यहाँ कांग्रेस कमेटी और खिलाफत कमेटीकी ओरसे जुलाहोंकी सभा खास तौरपर की गई। उसमें हमने समस्त बुननेवालोंसे निवेदन किया कि अब आजसे आप लोग केवल