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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चाहता हूँ कि भारत स्वदेशीका पूर्ण व्यवहार करे। मैं अपनी साधारण पोशाक फिर पहनना तभी शुरू कर सकता हूँ। मैं मद्रासके रायलसीमा जिलोंको देखकर आया हूँ। वहाँ अकाल पड़ रहा है। कहा जाता है कि वहाँ अन्नकी कमीसे स्त्रियाँ अपने बच्चों सहित पानीमें डूबकर मर गई हैं। इतने भारी संकटकी बात जानकर मेरे लिए, जितना कपड़ा मैं अब पहनता हूँ, उससे ज्यादा कपड़ा पहनना सम्भव नहीं।

मैं अभी आप लोगोंके सामने लगे विदेशी कपडोंके ढेरकी होली जलाऊँगा। मेरी दृष्टिमें यह आग हमारे हृदयोंमें धधकती हुई आगकी ही निशानी है। यदि वह आग हमारे अन्तर में धधकती ज्वालाका प्रतीक न हो तो फिर यह केवल दिखावा ही होगा।

आप स्वर्गीय लोकमान्य तिलकका बहुत आदर करते हैं। उनके 'गीता रहस्य'को समझने के लिए उनकी 'गीता'की व्याख्या पढ़ने की जरूरत नहीं। उनका 'गीता रहस्य' क्या है यह मैं दो शब्दों में बता सकता हूँ। उसका पहला भाग, स्वयं लोकमान्यके शब्दों में यह है : "स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।" उसके दूसरे भागकी पूर्ति मैं कर देता हूँ, "चरखा उसको प्राप्त करनेका साधन है।" मुझे विश्वास है। कि यदि लोकमान्य जीवित होते, तो वे आज हमारे साथ इस मंचपर बैठे होते। क्या उन्हें स्वदेशी से प्रेम नहीं था? उस समय स्वदेशीका जिस रूपमें व्यवहार किया जाता था उसपर उन्होंने वर्षों आचरण नहीं किया था? मैं जानता हूँ कि असहयोगमें उनका विश्वास था। उसपर आचरण करनेकी देशको शक्तिमें उन्हें अवश्य ही सन्देह था। आप स्वदेशीको पूर्ण रूपसे अपनाकर इसी वर्ष में स्वराज्यकी स्थापना करके इस सन्देहका निवारण कर दें। मुसलमानोंको खिलाफतके सम्बन्ध में गहरा दुःख है और हिन्दुओंको अपनी प्रतिज्ञाका उतना ही खयाल है। मैं दोनोंसे कहता हूँ कि वे चरखेको अपनायें और स्वदेशीको सफलता सुनिश्चित बना दें।

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, १०-१०-१९२१