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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अधिकार मिलें तो उनसे कोई लाभ नहीं। मैं धर्म-राज्यकी स्थापना करना चाहता हूँ; ऐसा राज्य जो सद्गुणों और सदाचारपर आधारित हो। ऐसा राज्य हमें तभी मिल सकता है जब हम उसका संकल्प कर लें। लालाजी आपसे कह चुके हैं कि यदि सरकार हमारे नेताओंको फॉसीपर भी लटका दे तो भी आपको एक आँसूतक नहीं गिराना चाहिए। मुझे आशा है कि स्त्रियाँ ऐसा ही करेंगी और अपने धर्मका कभी त्याग नहीं करेंगी।

स्वदेशीके प्रश्नकी चर्चा फिर उठाते हुए महात्मा गांधीने कहा :

मैं देखता हूँ कि मेरे सामने ऐसी बहुत-सी स्त्रियाँ बैठी हैं जिनके स्वदेशी कपड़ा भी नहीं पहना हुआ है; कुछने मिलोंका बना कपड़ा पहन रखा है। मैं आपसे पूछता हूँ कि क्या आपने अपने सन्दूकोंमें से विदेशी कपड़े निकालकर फेंक दिये हैं ? आपको स्मरण रखना चाहिए कि मिलका बना कपड़ा भी उन लोगोंके लिए है जो बेहद गरीब हैं, जैसे धनी लोग यहाँ बैठे हैं उनके लिए नहीं। आपको तो केवल स्वयं अपने हाथोंसे बनाये कपड़े ही पहनने चाहिए। पहले जमाने में यह देखा जाता था कि कोई आदमी कैसे कपड़े पहने है और उसके कपड़ोंसे ही उसकी प्रतिष्ठा आंकी जाती थी। हमें इस युगमें अपनी यह मनोवृत्ति बदल देनी चाहिए। मैं निजामके राज्यमें दत्तामण्डल नामके एक गाँव गया था। मैंने देखा कि वहाँके लोग अकालके कारण चार सालसे भूखों मर रहे हैं। उन स्त्री-पुरुषोंके पास कोई काम नहीं है और वे धीरे-धीरे कालके गाल में समाते जा रहे हैं, भूख से मर रहे हैं। यदि मैं इस सभामें बैठी आज सब बहनोंको यह बताऊँ कि मैंने वहाँ क्या-क्या देखा था, तो आप लज्जाके मारे रो पड़ेंगी। लोग भूखों मर रहे हैं और उनकी कोई परवाह नहीं करता। मुझे बहुत दुःख है कि यद्यपि मैं पिछले एक सालसे स्वदेशीका प्रचार कर रहा हूँ, फिर भी इस दिशामें काफी प्रगति नहीं हुई है। मैंने इस देशमें पुरुषों, स्त्रियों और बच्चोंको भूख से मरते देखा है, उनके शरीरोंमें खाल और हड्डियाँ रह गई हैं। वे कंकाल-मात्र ही रह गये हैं। -- क्योंकि उनके पास कोई काम नहीं है। वे हर काम करनेके लिए तैयार हैं, किन्तु उनके लिए कोई काम ही नहीं है, इसलिए वे कोई भी काम करनेमें असमर्थ हैं। सरकार उनको कभी-कभी सड़कोंपर पत्थर तोड़ने का काम देती है। इस स्थितिको देखते हुए भारतीयस्त्री-पुरुष बढ़िया-बढ़िया कपड़े कैसे पहन सकते हैं ? यदि हम चाहते हैं कि इस देशमें गरीबी न रहे और लोग वस्त्रहीन न रहें, तो हमें चरखेका उपयोग करना चाहिए। तभी हमारे करोड़ों लोग अपनी आजीविका कमा सकते हैं और अपने सम्मानकी रक्षा कर सकते हैं। यदि भारतीय इतना कर लें तो उनको स्वराज्य मिल जायेगा। भारतीयों को कोई अधिकार नहीं कि वे अपना धन विलासकी वस्तुओंको खरीदनेपर खर्च करें और अपना समय व्यर्थ गँवायें। आपके पास जो कुछ भी बचे, वह आपको गरीबों को दे देना चाहिए। ईश्वर गरीबोंके, चाण्डालों, ढेढ़ों और भंगियोंके घरोंमें रहता है; अमीरों और बड़े लोगोंके घरों में नहीं। मैं ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि मैं यदि इस