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भाषण : स्वदेशीपर

देश में फिरसे जन्म लूँ, तो किसी ढेढ़के घरमें ही लूँ। अदालतों और स्कूलों और कौंसिलोंका बहिष्कार एवं उपाधियोंका त्याग -- इन सभी कामोंमें हमें सफलता नहीं मिली है और लोगोंने देशके प्रति अपने कर्त्तव्यका पालन नहीं किया है। अब समय आ गया है जब स्त्रियोंको आगे बढ़ना चाहिए। आप विजय चाहती हैं तो आपको चरखेका प्रयोग करना होगा। धर्मके बिना हमें स्वराज्य नहीं मिलेगा, उसके बिना पंजाबके अन्यायोंका प्रतिकार नहीं होगा और न खिलाफत के अन्यायका। यदि हम स्वदेशीका कार्यक्रम पूरा कर लें तो हमें अपने लक्ष्यतक पहुँचनेसे कोई नहीं रोक सकेगा। यदि हममें स्वराज्यके लिए आवश्यक गुण हैं, तो हमें कोई भी सरकार अपने लक्ष्यतक पहुँचनेसे नहीं रोक सकेगी। समय बहुत कम रह गया है। हमें पिछले महीनेके अन्त तक स्वराज्य लेना था। उसमें हम असमर्थ रहे। क्या हममें अब इसके लिए आवश्यक श्रद्धा और आवश्यक विश्वास आयेगा? अब हमारे लिए चरखा ही एकमात्र साधन है। अन्तमें, आपसे यह कहना चाहता हूँ कि आप विदेशी कपड़ोंको त्याग दें, खद्दरका उपयोग करें और चरखेको स्वराज्यकी लड़ाईके शस्त्रके रूपमें स्वीकार करें।

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ११-१०-१९२१

१२४. भाषण : स्वदेशीपर

सूरत[१]
१२ अक्तूबर, १९२१

महात्माजीने सभामें उपस्थित लोगों में लगभग आधा घंटा भाषण दिया और उनसे अनुरोध किया कि वे अपना ध्यान केवल स्वदेशीपर केन्द्रित करें। उन्होंने कहा :

मैं सुरतके लोगोंको जानता हूँ और सूरतके लोग मुझे जानते हैं। मैंने अभी यहाँका दौरा किया था। उस समय लोगोंने मुझे सूरतकी बहुत अच्छी-अच्छी खबरें सुनाई थीं और आज मेरे सामने जो यह मैदान सफेद टोपी पहननेवालोंसे भरा है उसे देखकर मुझे आश्चर्य नहीं होता। फिर भी जब मैं देखता हूँ कि सूरतकी बहनोंने अभीतक खद्दरको नहीं अपनाया है, तो मुझे दुःख होता है। यदि हमें गुजरातकी मारफत स्वराज्य स्थापित करना है और यदि सूरतके लोगोंको उसमें अगुआई करनी है, तो ढाई महीने के इस थोड़ेसे बचे हुए समयमें अभी आपके लिए बहुत-कुछ करना शेष रहता है।

इसमें सन्देह नहीं कि इस समयतक सूरतमें अच्छा काम किया गया है, फिर भी अभी बहुत कुछ करना रहता है। आपके रक्तके कण-कणमें स्वदेशीको भावना

  1. यह सभा ताप्तीके किनारे इतिहास प्रसिद्ध पुराने किलेके पास हुई थी।