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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

समा जानी चाहिए। आपको यह अनुभव करना चाहिए कि विदेशी कपड़ेको छूना भी पाप है। मुझे अबतक जो कुछ कहना और समझाना था वह सब मैं कह और समझा चुका हूँ। अब हमको जो एकमात्र काम करना रहता है वह है स्वदेशीका प्रचार। पूर्ण शान्ति, हिन्दुओं और मुसलमानोंकी एकता, गरीबों और अकाल पीड़ितोंकी सहायता, स्त्रियोंके शोलकी रक्षा -- इन सबके लिए केवल एक ही उपाय है और वह है चरखेका प्रचार। सभामें आनेके लिए खादीकी टोपी और कोट पहन लेना ही काफी नहीं, यद्यपि उसका थोड़ा महत्व तो है। अब मैं शब्दों में अपनी शक्ति लगानेके बजाय अपना समय और शक्ति बचाकर अपने-आपको तन-मनसे खद्दरके उत्पादन में ही खपा देनेका विचार कर रहा हूँ। यह देशकी अधिक बड़ी सेवा होगी। अब मैं आपको यह बताऊँ कि मैंने अपने कपड़ों में यह परिवर्तन क्यों किया है और मैं केवल एक छोटी धोती मात्र क्यों पहनने लगा हूँ। मेरे देशके इतने स्त्री-पुरुष नंगे रह रहे हैं; इसलिए मैं लोगोंके सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहता हूँ। इस समय हाथ-कते सूत और हाथसे बुनी खादीकी जरूरत ही सबसे बड़ी है और यदि केवल सूरतके लोग ही यह कार्य करें तो सविनय अवज्ञाकी जरूरत नहीं रहेगी। अब आप जुलूस निकालना और सभाएँ करना भी छोड़ दें। अब आपको अपना समय सूत कातने और कपड़ा बुननेके लिए बचाना है। मेरे भाषणको अपेक्षा इससे कहीं अधिक प्रचार होगा। मैं जल्दी ही उदाहरण प्रस्तुत करूँगा। सूरतके लोगोंको मेरा एक ही सन्देश है : स्वदेशी और केवल स्वदेशीका प्रचार करो। हमारे पास समय कम है; फिर भी यदि लोग ईमानदारीसे और संकल्पपूर्वक कार्य करें तो काफी है। यह एक धर्म-युद्ध है और इसमें हम ईश्वरको धोखा नहीं दे सकते। मैं हिन्दुओंसे विशेष रूपसे कहता हूँ कि वे अस्पृश्यताके अभिशापको दूर कर दें। यदि अस्पृश्यता कायम रही तो ईश्वर आपको क्षमा नहीं करेगा। ईश्वर इन छः करोड़ अछूतों की पुकार सुनता है और फलस्वरूप उसने हम उत्पीड़कों को शेष संसारको दृष्टिमें अछूत बना दिया है।

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २२-१०-१९२१