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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

खुदाको तसलीम करते हैं या नहीं?" और जब उनसे बैठ जानेके लिए कहा गया तब बैठने से इनकार करना और यह कहना कि "देखूं तो आप क्या कर सकते हैं, क्या उनके लिए ठीक था?

मेरे खयालमें तो सविनय अवज्ञा शुरू कर देनेपर भी हम सबको नम्रताके साथ ही पेश आना चाहिए। असहयोगीको तो नम्रताकी मूर्ति होना चाहिए। उसको तो कैसी भी उत्तेजनात्मक स्थितिमें आपसे बाहर न होना चाहिए और न किसी तरहका बल-प्रयोग ही करना चाहिए। गुस्ताखी तो उसे छू तक न जानी चाहिए। अगर मेरा यह कहना सही हो तो अली-भाइयोंका यह काम सर्वथा गैर वाजिब था बल्कि खासा गुस्ताखी-भरा माना जा सकता है। गुस्ताखी शब्दके प्रयोगके लिए क्षमा चाहता हूँ।

मेरी समझमें तो अगर अली-भाई किसी भी तरहसे अदालतको मदद पहुँचानके या हाकिमोंके साथ जहालतका बरताव करनेके बजाय, अदालतमें चुपचाप ही रहते तो यह उन जैसे नेताके लायक, बहुत ही बेहतर और बहुत ही दूरन्देशीका काम होता।

मुझे डर है कि इस आखिरी बातसे शायद आप नाराज हो जायें। अगर ऐसा हो तो मैं आपसे माफीकी दरख्वास्त करता हूँ। मुझसे तो यह बात कहे बिना रहा ही नहीं गया। मैं जानता हूँ कि आप किसी-न-किसी तरह अली-भाइयोंके इस कामको भी सही ठहरायेंगे, परन्तु यह नहीं जानता कि किस तरह।

यह पत्र दिल खोलकर लिखा गया है। लेकिन इसमें पत्र-लेखकका हेतु अच्छा ही है। कितने ही मित्रोंने मुझसे ये ही सवाल किये हैं, और मैंने अपनी शक्ति-भर उनके समाधानका प्रयत्न किया है। लेकिन इस पूर्वोक्त पत्रपर सार्वजनिक रीतिसे विचार करनेकी जरूरत है। यदि अलीभाइयोंका आचरण असंगत है तो इसका कारण है अखिल भारतीय कांग्रेस समिति, जिसने कि बयान पेश करनेकी अनुमति दी है। कोई चाहे तो समितिके इस निर्णयके सही या गलत होनेके बारेमें सवाल कर सकता है, परन्तु वह अली-भाइयोंपर असंगतिका दोषारोपण नहीं कर सकता।

महासमितिने अपना यह निर्णय मेरी सलाहपर किया और मैंने ऐसी सलाह क्यों दी, इसके कारण जनताको बता देना शायद मेरा कर्त्तव्य है। बयान पेश करनेसे मुल्जिमको अपनी स्थिति स्पष्ट करनेका अवसर मिलता है और यदि वह अदालतमें दिया जाता है तो वह हमेशा के लिए रेकार्डमें शामिल हो जाता है। इसके सिवा मुझे इस बातपर विश्वास है कि भारतवर्ष इसी साल स्वराज्य प्राप्त करनेकी सामर्थ्य रखता है। स्वराज्यकी स्थापना होनेके पहले मैं लाखों लोगोंके जेलमें दाखिल होनेकी उम्मीद करता हूँ। मैं स्वराज्यके बाद गठित पार्लियामेंटसे उन तमाम असहयोगी कैदियोंकी रिहाईकी अपेक्षा रखता हूँ, जिनपर कोई नैतिक अपराध करनेका आरोप साबित नहीं हुआ होगा। स्वराज्य के पश्चात् न्यायाधीशोंको ये बयान बड़ी कीमती मदद देंगे। फिर, मैं यह भी चाहता हूँ कि अपराधी लोग असहयोगसे अनुचित लाभ न उठा सकें और