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विपरीत दृश्य

बुलन्दशहर से प्राप्त एक पत्र यहाँ दे रहा हूँ। उससे मेरा अभिप्राय और भी अधिक स्पष्ट हो जायेगा। पत्र इस प्रकार है :

इसी ३ तारीखको यहाँके जिला मजिस्ट्रेटके इजलासमें एक राजनैतिक मुकदमा पेश हुआ। उसके सिलसिलेमें मजिस्ट्रेटकी बेजा कार्रवाइयोंकी तरफ आपका ध्यान दिलाना चाहता हूँ।

यह मुकदमा जिला मजिस्ट्रेट मिस्टर डॉब्सके इजलासमें, महाशय महावीरप्रसाद त्यागीका था[१]. . . जब गवाहकी जिरह-खास खतम हुई, तब अदालतने मुल्जिमसे पूछा कि क्या आप गवाहसे जिरह करना चाहते हैं ? मुल्जिमने जवाब दिया -- नहीं। उन्होंने कहा, आप सिर्फ इतना ही लिखा लीजिए कि अंग्रेजी अनुवाद[२] मूलसे नहीं मिलता है, जैसा कि सरकारी वकीलने अदालतके सामने साफ-साफ कबूल किया है।. . . मजिस्ट्रेटने यह बात लिख लेनेसे इनकार किया और कहा "आप बेहूदा बातें कहते हैं।" इसपर मुल्जिमको बुरा लगा और उसने उल्टकर कहा --"मैं तो समझता हूँ, आप ही बेहूदा बात कह रहे हैं।" तब मजिस्ट्रेट कॉस्टेबल नं० ५५ बलवन्तसिंहसे, जो कि मुल्जिमपर तैनात था, कहा कि इसे तमाचा लगाओ। सिपाही झिझका और उसने बड़ी ही अनिच्छाके साथ मुल्जिमको गर्दन के पिछले हिस्सेपर धीरेसे एक थप्पड़ लगाया। यह देख कर मजिस्ट्रेटने फिर उसे आज्ञा दी कि मुँहपर एक जोरका तमाचा लगाओ। कॉस्टेबल मजबूर हुआ। उसने वैसा ही किया। मुल्जिमने इस बेइज्जतीको चुपचाप बरदाश्त किया। उसकी ओरसे कोई वकील तो था ही नहीं और न उसने अपनी कोई सफाई पेश की. . .|

मजिस्ट्रेटकी इस ज्यादतीसे यहाँके लोगोंमें बड़ी उत्तेजना और रोष फैला हुआ है।. . . एक सार्वजनिक सभा की गई। ... और उसमें उपयुक्त प्रस्ताव पास किये गये।

बुलन्दशहरकी आम सभाके प्रस्तावमें मुल्जिमको उसके आत्मसंयम, वीरता और मौन कष्ट सहनपर बधाइयाँ दी गई हैं। लेकिन मुझे बड़ा सन्देह है कि इन विशेषणोंका उपयोग समुचित रूपसे हुआ है या नहीं। मुल्जिमने विरोधस्वरूप एक भी शब्द क्यों नहीं कहा? इस तथाकथित मजिस्ट्रेटके इजलासमें अपना मुकदमा चलने देनेसे इनकार क्यों नहीं कर दिया? मजिस्ट्रेटने तो बिलकुल साफ-साफ जुर्म किया है और इसी तरह उस अनिच्छुक काँस्टेबलने भी गुनाह किया। क्या मुल्जिमने प्रेम और नम्रताके कारण अपना मुँह बन्द रखा? मौन या निष्क्रियताका उपयोग डर या डरसे भी किसी बुरी चीजपर परदा डालने के लिए हरगिज न होना चाहिए। क्या अली-भाइयोंका

  1. अ० भा० कांग्रेस कमेटीके सदस्य।
  2. अपराधी के भाषणोंका।