पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/३३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३००
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्री बारदोलोई जिन्होंने उक्त आदेशका पाठ तार द्वारा सूचित किया है, आगे कहते हैं कि "यह और कुछ नहीं, शान्तिपूर्वक धरना देनेवालोंको वैसा करनेसे रोकनेकी ही एक तरकीब है।

उपाय

मैं तो कार्यकर्त्ताओंको यही सलाह दूंगा कि जबतक बहुत जरूरी न हो आये, तबतक वे कपड़े की दुकानोंपर धरना न दें। लेकिन जब ऐसी जरूरत आ पड़े तब कांग्रेसकी कार्यसमितिके निर्देशके अनुसार लोगोंको यह छूट है कि वे चटगाँव और गौहाटीके जैसे आदेशोंकी अवहेलना कर सकते हैं, और निर्भीक होकर धरना देते हुए खुशी-खुशी जेल जा सकते हैं। अगर हम स्वदेशी के लिए जेलोंको भर देते हैं, तो जेल दरअसल महल बन जायेंगे, क्योंकि स्वदेशी हमारे राष्ट्रीय जीवनके लिए प्राणवायुके समान है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १३-१०-१९२१

१२६. महान् प्रहरी

शान्तिनिकेतनके गायकने 'मॉडर्न रिव्यू' में वर्तमान आन्दोलनपर एक बड़ा सुन्दर लेख[१] लिखा है। वास्तवमें यह शब्द चित्रोंकी एक आकर्षक मालिका है, जिसे केवल वे ही गूंथ सकते थे। इसमें आप्तत्वके खिलाफ, मानसिक दासताके खिलाफ -- अर्थात् भय या आशासे किसीकी सनकका आँख मूंदकर अनुकरण करनेको जिस नामसे भी पुकारा जाये, उसके खिलाफ -- एक जोरदार आवाज उठाई गई है। वह हम सभी कार्यकर्ताओंको इस बातकी याद दिलाता है कि हमें धीरज नहीं खोना चाहिए, किसी पर जबरदस्ती किसीका मत लादना नहीं चाहिए, चाहे वह मत कितने ही बड़े आदमीका क्यों न हो। इस रूपमें यह लेख कल्याणकर तथा स्वागत करने लायक है। कविवर हमसे कहते हैं कि जो चीज बुद्धि या हृदयको ठीक नहीं लगे, उसे तुरन्त अस्वीकार कर देना चाहिए। अगर हम स्वराज्य पाना चाहते हैं तो हमें हर हालतमें सत्यके उस रूपपर दृढ़ रहना चाहिए जिस रूपमें हम उसे जानते हैं। जो सुधारक इस बातपर नाराज हो जाता है कि उसके सन्देशको लोग स्वीकार नहीं कर रहे हैं, उसे तो पहले जंगलोंमें जाकर जीवन प्रवाहको तटस्थ बुद्धिसे देखना, प्रतीक्षा करना और भगवान्का भजन करते हुए धीरज रखना सीखना चाहिए। इन सारी बातोंसे सभी हार्दिक रूपसे सहमत होंगे, और सत्य तथा विवेकके पक्ष में अपनी आवाज उठाने के लिए कविवर अपने देशभाइयों के धन्यवादके पात्र हैं। अगर हम अपने विवेकको दूसरेके हवाले कर देते हैं तो इसमें कोई शक नहीं कि हमारी परवर्ती स्थिति पूर्ववर्ती स्थितिसे भी बुरी

  1. अक्तूबर के अंक में "सत्यकी पुकार" ("कॉल ऑफ टूथ" ) शीर्षकसे।