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महान् प्रहरी

होगी। और यह देखकर मुझे बड़ा दुःख होगा कि देशने बिना सोचे-विचारे आँख मूँदकर, मैंने जो कुछ कहा या किया, उसका अनुसरण किया। मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ कि प्रेमके आगे आँख मूंदकर आत्म-समर्पण कर देना अक्सर अत्याचारीके अत्याचारको लाचार होकर स्वीकार करनेसे भी अधिक अनिष्टकर सिद्ध होता है। जो अत्याचारीका गुलाम है, उसकी मुक्तिकी आशा तो फिर भी है, किन्तु प्रेमके गुलाम के लिए कोई आशा नहीं है। प्रेमकी उपयोगिता दुर्बलोंमें बलका संचार करनेमें है और उस दृष्टिसे वह जरूरी है, लेकिन जब प्रेमके कारण किसी बातमें विश्वास न करनेवाला व्यक्ति भी उसको मानने लगता है तो प्रेम अत्याचार हो जाता है। किसी मन्त्रका महत्व जाने बिना उसका जप करना पुरुषोचित नहीं कहा जा सकता। इसलिए कविवरने, जो लोग चरखेकी पुकारपर बिना सोचे-समझे अन्ध-भावसे चल रहे हैं, उन सबसे विद्रोह करनेको कहकर ठीक ही किया है। हममें से जो लोग अधीर होकर अपनेसे भिन्न मत रखनेवालोंके प्रति असहिष्णुता या यहाँतक कि हिंसासे भी काम लेते हैं, उन सबके लिए यह लेख एक चेतावनी है। मैं कविवरको एक प्रहरी मानता हूँ, जो हमें हठ-धर्मी, बौद्धिक आलस्य, असहिष्णुता, अज्ञान, जड़ता और इसी तरह के अन्य शत्रुओंके आगमन के खिलाफ आगाह कर रहा है।

कविवरने हमसे सचेत और सजग रहने को कहा है; उन्होंने कहा है कि यदि ऐसा न हुआ तो हो सकता है, हम सही-गलतका विचार करना ही बन्द कर दें, और उनके कथनके इस अंशसे मैं सहमत हूँ। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं उनकी इस धारणाको भी सही मानता हूँ कि देशमें बड़े पैमानेपर लोग आँख मूंदकर किसीकी बातपर चल रहे हैं। मैंने बार-बार लोगोंसे अपनी विवेक-बुद्धिसे काम लेनेको कहा है और मैं कविवरको भरोसा दिलाता हूँ कि आज अगर सौभाग्यसे यह देश चरखेको खुशहालीका स्रोत मानने लगा है तो उसने बहुत सोचने-विचारने और संकोच-विकोचके बाद ही ऐसा किया है। हाँ, यह मैं नहीं कह सकता कि भारत के शिक्षित लोग अब भी चरखे के सत्यको ग्रहण कर पाये हैं या नहीं। ऊपरके कूड़ा-करकटको देखकर कविवर ऐसा न मानें कि इसके भीतर भी यही है। उन्हें सचाईकी तहमें पैठकर स्वयं यह देखना चाहिए कि लोगोंने चरखेको अन्ध आस्थाके कारण स्वीकार किया है या इस कारण कि उनकी बुद्धिको यह चीज आवश्यक जान पड़ी।

मैं तो कविसे लेकर किंकरतक सभीसे यज्ञके रूपमें चरखा चलानेको कहता हूँ। जब युद्ध छिड़ जाता है तब कवि अपना गायन बन्द कर देता है, वकील अपनी कानूनकी पोथियाँ रख देता है, बालक अपनी पाठ्य पुस्तकें छोड़ देते हैं। कवि युद्धकी समाप्तिके बात सच्चा गीत गा सकता है, वकील भी जब आपसी झगड़े के लिए लोगोंके पास समय होगा तब कानूनकी पोथियाँ पुनः हाथमें लेगा। जब किसी घरमें आग लगती है तब उसमें रहनेवाले सभी लोग बाहर आकर एक-एक डोल लेकर आग बुझानेमें जुट जाते हैं। जब मेरे आसपासके सभी लोग भोजनके अभावमें मर रहे हैं तब मेरा एकमात्र काम यही हो सकता है कि उन भूखोंके लिए दाने जुटाने की कोशिश करूँ। मेरी यह पक्की मान्यता है कि भारत एक ऐसा घर है जिसमें आज आग लगी हुई है, क्योंकि इसे दिन-ब-दिन पुंसत्वहीन बनाया जा रहा है; यह भूखसे मर रहा है, क्योंकि