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टिप्पणियाँ

तरह अमल किया है। जिन बातों में लोग उसपर अमल नहीं कर पाये वहाँ वे अपनी कमजोरी कबूल करते हैं और सबल बननेकी कोशिश करते हैं।

इस तरह जवाब देकर मैंने प्रश्नकर्त्ताका तो कुछ समाधान किया, लेकिन खुद मेरा समाधान नहीं हुआ। उनके सवालोंमें मुझे तथ्य दिखाई दिया। मैं विचारमें पड़ गया। उनसे तो मैंने यही कहा कि इस बारेमें मैं "नवजीवन" में लिखूंगा, लेकिन यह टिप्पणी लिखते समय मुझपर उन प्रश्नोंका बहुत ज्यादा असर हुआ है। यद्यपि मैं समझता हूँ कि मैंने लोगोंकी तरफसे जो वकालत की, वह वाजिब है तो भी मैं यह तो समझ रहा हूँ कि जिन नियमों और कायदोंको खुद हमी बनाते हैं उनको अमलमें लानेकी शक्ति भी हममें बहुत ज्यादा होनी चाहिए। "जहाँ वृक्ष हों ही नहीं वहाँ एरण्ड ही वृक्ष मान लिया जाता है" वाली कहावत के अनुसार हम सन्तोष नहीं मान सकते। हम तो स्वराज्यकी कसौटीपर कसे जा रहे हैं, उसमें हम पूरे नहीं उतर रहे हैं। हमारे सोने में जरूरत से ज्यादा मिलावट है। सोनेके कसको तो परखैया ही परख सकता है। और हमें तो उस कसौटीपर स्वराज्य के लायक सिद्ध होना है। इसलिए जबतक हम उतने पूरे न उतरेंगे तबतक हम स्वराज्य प्राप्त करनेकी शक्ति ही किस तरह प्राप्त कर सकते हैं? प्रश्नकर्ताकी यह दलील भी वाजिब है कि कांग्रेसके हम सेवकोंको तो बिना दिक्कतके ही पूरे सौ टंच उतरना चाहिए। यह बात तो स्वतः सिद्ध है कि हम सब कार्यकारिणी समिति या प्रान्तीय समितिके पास किये हुए प्रस्तावोंका अमल यन्त्र या मशीनकी तरह नियमित होकर नहीं करते।

इस लापरवाहीका एक कारण भी है। वह यह कि आजतक हमने बिना विचारे हाथ ऊँचे किये हैं, डर या शर्म अथवा लालचसे हाथ ऊँचे उठाये हैं। लेकिन स्वतन्त्रता चाहनेवालोंको ऐसी बातें शोभा नहीं देतीं। ऐसा मनुष्य तो अकेला होनेपर भी अपने मनके प्रतिकूल किसी भी प्रस्तावके खिलाफ हाथ ऊँचा उठाता है और स्वतन्त्र तन्त्र में दूसरे लोग उसे धन्यवाद देकर आदरकी दृष्टिसे देखते हैं। इसलिए हमें जो प्रस्ताव मंजूर न हो उसके खिलाफ हम अवश्य अपनी आवाज उठायें, अवश्य उसपर वादविवाद करें; और जब उसमें सार दिखाई दे तभी उसे मंजूर करें। लेकिन एक बार स्वीकार कर लेनेपर फिर मन, वचन और कर्मसे उसपर दृढ़ रहना ही चाहिए। इस तरहके फी हजार एक भी आदमी अगर हमें मिल जाये तो हम जरूर ही स्वराज्य स्थापित करनेमें समर्थ हो सकते हैं। इस हिसाबसे हमें सारे हिन्दुस्तानमें तीन लाख ऐसे आदमियोंकी जरूरत है जो अ० भा० काँ० कमेटीके प्रस्तावोंपर खुद पूरी तरह अमल करें और दूसरोंसे भी उन्हें पालन करानेका प्रयत्न करें। यों ऐसे काफी आदमी हो गये हैं, लेकिन फिर भी मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि वे तीन लाख तो किसी हालत में नहीं हैं। आजतक तो हम सरकारसे ही आशा रखते आये थे। हमारे प्रस्ताव उसके लिए होते थे; इसलिए उन प्रस्तावोंके पास कर देनेपर हमारे लिए करनेका काम बहुत कम रह जाता था। लेकिन गये बारह महीनोंमें हमने एक उद्योग किया है; और वह यह कि खुद हम ही कुछ काम करें।

अभी वक्त चला नहीं गया है। अगर हम पूरी मेहनत करें और जो-जो प्रस्ताव पास हुए हैं उनपर अमल करें तो मैं मानता हूँ कि हम बहुत कुछ आगे बढ़ जायेंगे।