पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/३५७

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टिप्पणियाँ ३२५ अब मैं तुम्हें बता दूं कि अगर अदालतके प्रति तुम्हारा व्यवहार आदर- पूर्ण रहेगा तो मैं भी तुम्हारे साथ शिष्टतापूर्ण व्यवहार करूंगा। अगर तुम ठीक व्यवहार नहीं करोगे तो मैं उचित तरीकेसे उसका निराकरण करनेकी कोशिश करूँगा। जो भी हो, तुम्हारे मामलेको धैर्यपूर्वक, उचित सुनवाई की जायेगी; और ठीक अवसर आनेपर तुमको अगर कोई संगत बात कहनी होगी तो उसे कहनेका तुम्हें पूरा मौका दिया जायेगा। यहाँ में इतना और बता दूं कि तुमपर जो अभियोग है, उस अभियोगसे इस अदालतमें या किसी अन्य अदालतमें यदि तुम निर्दोष साबित हुए तो तुम्हारे समाजके लोग इस जिलेमें जो अच्छा काम कर रहे हैं, उसका खयाल रखते हुए मैं मलाबार-सहायता कोषमें ५० रुपये दूंगा । डब्ल्यू० ई० जे० डॉन्स मैं स्पष्ट देख रहा हूँ कि जैसे सर माइकेल ओ'डायरको कौंसिलकी शानमें गुस्ताखी करने के लिए क्षमा माँगनेपर मजबूर किया गया था, वैसे ही उक्त मजिस्ट्रेट पर भी दबाव डालकर क्षमा याचना कराई गई है। इस क्षमा याचनाकी शब्दावलीमें हार्दिकता या भावनाका अभाव था क्योंकि मजिस्ट्रेटने उसी दिनकी सुनवाईके दौरान अभियुक्तके बयानके एक हिस्सेको, जो उसे पसन्द नहीं था, कार्रवाईके विवरणसे निकालकर उनकी धैर्यपूर्ण सुनवाई करनेका अपना वचन तोड़ दिया। उसने जो अभि- युक्तके दोषमुक्त सिद्ध होने की शर्तपर वफादार लोगोंका खयाल करके मलाबार सहायता कोषमें ५० रुपये देने की बात कही, उससे सिद्ध होता है कि वह सही रास्तेपर आ ही नहीं सकता। उस दानका उद्देश्य उस अपराधको धोना था जो मजिस्ट्रेटने किया था । वफादार लोगोंका अभियुक्तके दोषी अथवा निर्दोष सिद्ध होनेसे क्या सम्बन्ध हो सकता था ? फिर उस दानके पीछे अभियुक्तके निर्दोष होनेकी शर्त लगानेकी क्या जरूरत थी ? मजिस्ट्रेटने जो अभियुक्तको थप्पड़ लगवाये, उससे एक बहुत गम्भीर सवाल उठ खड़ा होता है। क्या ऐसा कोई व्यक्ति किसी सभ्य सरकारमें एक दिन भी मजिस्ट्रेटके पद- पर आसीन रह सकता था ? उदाहरणके लिए, क्या इंग्लैंड के मुख्य न्यायाधीश महोदय, जिस कैदीके मामलेकी सुनवाई हो रही हो, उसे थप्पड़ लगवाने के बाद अपने पदपर आसीन रह सकते ? अगर भारत सरकार बिलकुल नियम-विधान रहित और सर्वथा गैरजिम्मेदार सरकार नहीं होती तो मजिस्ट्रेटको तुरन्त मुअत्तिल करके उसपर एक जरायमपेशा आदमीकी तरह मुकदमा चलाया जाता । एक न्यायाधीश द्वारा किसी अभियुक्तके मुकदमेकी सुनवाईके दौरान उस अभियुक्तको पिटवाना कोई मामूली बात नहीं है और उसे यों ही टाला नहीं जा सकता । सहयोग करते जानेमें भी धीरजकी कोई हद होती है। क्या सम्बन्धित भारतीय मन्त्रियोंकी आत्मा, मजिस्ट्रेटने राष्ट्रके प्रति जो अपराध किया है उसके लिए उन्हें धिक्कार नहीं देती ? या वे ऐसा मानते हैं कि चूंकि मजिस्ट्रेट उनके विभागमें नहीं है, इसलिए उनपर उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं है ? Gandhi Heritage Portal