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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जायें; वे चाहते थे, हम अपने पेटके बल रेंगें, अपनी नाकसे लकीर खींचें। यह उनके “आतंक” के खेलका हिस्सा था। जब हम आमने-सामने डटकर आतंकका सामना करते हैं तो वह ऐसे विलीन हो जाता है मानो कोई परछांई हो। यह हो सकता है कि हम सभी अपने भीतर वैसा साहस विकसित नहीं कर पायें, लेकिन मेरा निश्चित विश्वास है कि अगर हममें से कुछमें भी ऐसा साहस न जगे कि हम प्रतिकारके लिए अपना हाथ उठाये बिना चट्टानकी तरह अडिग रह सकें तो इस वर्ष स्वराज्य मिलना असम्भव है। जब अत्याचारीके प्रहारका कोई उत्तर नहीं मिलता, कोई उस पर उलट कर प्रहार नहीं करता तो वह स्वयं ही उस प्रहारका शिकार होता है―ठीक वैसे ही जैसे कोई हवामें जोरसे अपना हाथ मारे तो उसका हाथ उखड़ जाता है, और किसीका कुछ नहीं बिगड़ता।

एक प्रसंगोचित सवाल

और जैसे हमें उपर्युक्त ढंगके ठंडे साहसकी जरूरत है, वैसे ही अगर हम सविनय अवज्ञा करने लायक बनना चाहते हैं तो हमें पूर्ण अनुशासनकी जरूरत है और अपने भीतर स्वेच्छासे आज्ञा पालन करनेका गुण विकसित करना है। सविनय अवज्ञा अहिंसाकी सक्रिय अभिव्यक्ति है। सविनय अवज्ञा बलवानोंकी अहिंसाको कमजोरोंकी निष्क्रिय यानी निषेधात्मक अहिंसासे अलग करके दिखाती है। और जैसे कमजोरीसे हम स्वराज्य नहीं पा सकते, वैसे ही निषेधात्मक अहिंसा हमें कभी अपने लक्ष्यतक नहीं पहुँचा सकती।

तो क्या हममें आवश्यक अनुशासन है? जैसा कि एक मित्रने मुझसे पूछा, क्या हमने स्वयं अपने ही नियमों और प्रस्तावोंपर चलनेकी भावना विकसित की है? पिछले बारह महीनोंमें वैसे हमने बहुत अधिक प्रगति की है, लेकिन निश्चय ही इतनी प्रगति नहीं की है कि हम निश्चित भावसे सविनय अवज्ञा प्रारम्भ कर सकें। जो नियम हम स्वेच्छासे बनाते हैं और जिनका पालन नहीं करनेपर हमें अपनी अन्तरात्माके धिक्कारके अलावा और किसी दण्डका भय नहीं है, उन्हें कर्त्तव्य के बन्धनकी तरह उन नियमोंसे भी अधिक बन्धनकारी मानना चाहिए जो हमपर किसीके द्वारा थोप दिये जाते हैं या जिन्हें भंग करनेपर जुर्माना वगैरह देकर हम अपने कर्त्तव्यसे छुट्टी पा जाते हैं। तो इससे निष्कर्ष यही निकलता है कि अगर हमने स्वयं अपने नियमोंका पालन करना नहीं सीखा है, दूसरे शब्दोंमें, अगर हमने अपना वचन निभाना नहीं सीखा है, तो इसका मतलब यह है कि हम उस अवज्ञाके योग्य नहीं हैं जिसे किसी भी तरह सविनय अवज्ञा कहा जा सकता है। इसलिए मैं सभी कांग्रेसियोंसे, सभी असहयोगियोंसे, और सबसे बढ़कर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके सभी सदस्योंसे कहता हूँ कि वे, चाहे स्त्री हों या पुरुष, कठिनसे-कठिन आत्म-निरीक्षण करें और जहाँ उनसे चुक हुई हो वहाँ अपनेमें सुधार करके अपने आपको कांग्रेस और अपने स्वीकृत धर्मके सच्चे अनुगामी बनायें।

आगामी बैठक

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी आगामी बैठकमें, जहाँतक उन तीन लक्ष्योंका सम्बन्ध है जिन्हें हमें इसी साल प्राप्त करना है, लगभग हमारे भाग्यका निबटारा हो