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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लाखकी वह रकम इकट्ठा नहीं कर पाये थे, जिसका निश्चित वादा किया गया है। लेकिन निश्चय ही उन्हें यह रकम इकट्ठा कर लेनेकी आशा थी और दस लाख अतिरिक्त भी। खैर, यह दस लाख न भी मिले तो भी, एक करोड़ रुपये इकट्ठा हो जाना तो निश्चित ही है। अन्य प्रान्तोंके बारेमें बताई गई राशियाँ कम करके बताई गई थीं। अधिकांश पैसा निश्चय ही अब इकट्ठा किया जा चुका है। कुछ देनदारियाँ अभी बाकी हैं। हर प्रान्तको अपनी वित्तीय स्थितिकी जानकारी है। हर प्रान्त अपना हिसाब-किताब अलग रखता है और उसकी जाँच कोई भी सदस्य कर सकता है। मुझे मालूम है कि कुछ प्रान्तोंमें समय-समयपर हिसाब प्रकाशित होता रहता है और स्थानीय लेखा-परीक्षक उसकी जाँच भी करते हैं। अधिकांश प्रान्तोंने अपना-अपना बजट बना लिया है, और वे स्वीकृत बजटके अनुसार ही खर्च करते हैं। यह सम्भव है कि कुछ प्रान्तोंने दूसरे प्रान्तोंके मुकाबले अधिक लापरवाहीसे खर्च किया हो, यह भी सम्भव है कि कोई बाहरी आदमी हर प्रान्तमें यह सिद्ध कर दिखाये कि वहाँके किसी-न-किसी-विभागमें फिजूलखर्ची हुई है। लेकिन इतना तो मैं निश्चित तौरपर जानता हूँ कि अधिकांश प्रान्तोंमें प्रान्तीय संगठनोंके सदस्योंकी जानकारीमें और उनकी स्वीकृतिसे ही खर्च किया गया है और किया जा रहा है। जहाँतक मैं जानता हूँ, हर प्रान्तमें अध्यक्षपदपर बड़े-बड़े ईमानदार लोग हैं। सर्वश्री जमनालाल बजाज और उमर सोबानी के रूपमें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीको ऐसे कोषाध्यक्ष प्राप्त हैं जिन्हें सर्वत्र सम्मानकी दृष्टि से देखा जाता है और सर्वश्री नेहरू, अन्सारी तथा राजगोपालाचारी के रूपमें उसे ऐसे मन्त्री मिले हुए हैं जिनसे अधिक योग्य, अध्यवसायी या ईमानदार आदमी मिलने असम्भव हैं। इसलिए मैं अपने व्यस्त पाठकोंको, जो कांग्रेसकी वित्तीय स्थितिकी इतनी अधिक चिन्ता करते हैं, बेहिचक यह आश्वासन दे सकता हूँ कि कांग्रेसके अधिकारियोंने कांग्रेसके सभी कोषोंकी उगाही और उसकी समुचित व्यवस्थाके लिए वह सब-कुछ कर लिया है जो मनुष्यके वशमें है।

परराष्ट्र नीति

कार्यसमितिने परराष्ट्र-नीतिसे सम्बन्ध रखनेवाले अपने प्रस्तावका जो मसविदा तैयार किया है और जगह-जगह भेजा है, उससे देशमें कुछ सनसनी-सी फैल गई है। कार्यकारिणी समितिको इसपर गम्भीरताके साथ चर्चा करते हुए देखकर कुछ लोगोंको आश्चर्य हुआ। इससे यह जाहिर होता है कि उनकी रायमें भारत अभी स्वराज्यके योग्य नहीं है। इससे पहले भी मैंने यह दिखलानेका प्रयत्न किया है कि प्रत्येक व्यक्ति और राष्ट्र हमेशा स्वराज्यके योग्य रहता है, या दूसरे ढंगसे यों कहें कि किसी भी राष्ट्रको किसी दूसरे राष्ट्रकी मुहाफिजत या निगहबानीकी जरूरत नहीं है। आज जबकि हम स्वराज्य स्थापित करनेकी अपनी योजनाओंको अंजाम दे रहे हैं, अपनी परराष्ट्र-नीतिपर विचार करना और उसे निर्धारित करना हमारे लिए जरूरी है। निश्चय ही हम इस बात के लिए बाध्य हैं कि दुनियाको हम अधिकारपूर्वक यह बता दें कि हम उसके साथ कैसा नाता रखना चाहते हैं। अगर हम अपने पड़ोसी देशोंसे निर्भय हैं, या अपने-आपको शक्तिशाली महसूस करते हुए भी हम उनके खिलाफ कुछ