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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। लेकिन उपाय खोजनेकी जिम्मेदारी वे पाठकोंपर ही छोड़ देते हैं। बड़ा अच्छा होता, अगर उन्होंने कुछ ठोस सुझाव दिये होते। स्पष्टतः, वे चाहेंगे कि भले ही यह सिर्फ शुरुआतके तौरपर ही हो, किन्तु हिन्दू और मुसलमान आपसमें शादी-विवाह और खान-पानका सम्बन्ध स्थापित करें। यदि यही आमूल-चूल परिवर्तन है जो वे चाहते हैं, और यदि यह स्वराज्य -प्राप्तिकी एक पूर्व-शर्त है तो मुझे लगता है कि हमें उसके लिए कमसे-कम सौ सालतक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। यह तो हिन्दुओंसे अपना धर्म छोड़ देनेको कहने के बराबर है। मैं यह नहीं कहता कि ऐसा करना गलत है। लेकिन यह अवश्य कहता हूँ कि व्यावहारिक राजनीतिकी सीमामें समानेवाला सुधार नहीं है। और अगर ऐसा परिवर्तन कभी आया भी तो उसका मतलब हिन्दू-मुसलमान एकता नहीं होगा। और वर्तमान आन्दोलनका उद्देश्य है कि निष्ठावान मुसलमान अपना धर्म ज्योंका-त्यों कायम रखें और निष्ठावान हिन्दू अपना धर्म । और तब भी दोनोंके बीच एकता रहे। इसीलिए मैंने सभाओंमें उपस्थित लोगोंसे अक्सर कहा है कि अली-बन्धु और मैं, सभी हिन्दुओं और मुसलमानोंके लिए हिन्दू-मुस्लिम एकताकी एक मिसाल हैं। हम दोनों अपने-अपने धर्मोमें प्रबल निष्ठा रखनेका दावा करते हैं। दोनों भाइयोंका मैं बहुत अधिक आदर करता हूँ, फिर भी मैं उनके किसी भी लड़केसे अपनी बेटीकी शादी नहीं कर सकता, और मैं जानता हूँ वे भी कुछ ऐसा सोचकर कि हिन्दू होनेके बावजूद मैंने अपनेमें इतना परिवर्तन कर लिया है कि उनकी लड़कीका हाथ अपने लड़केके हाथमें दिलानेको लालायित हूँ, अपनी लड़की मेरे लड़केको ब्याह नहीं देंगे। मैं उनके सामिष भोजनमें शामिल नहीं होता, और वे मेरी इस कट्टरताका― अगर मेरे इस संयमको कट्टरता कहा जा सके तो―बड़ी सावधानीसे खयाल रखते हैं। और फिर भी मैं नहीं जानता कि किन्हीं तीन व्यक्तियोंके हृदय उस तरह एकात्म हैं जिस तरह अली-बन्धुओंका और मेरा हृदय है। और मैं पाठकोंको भरोसा दिलाता हूँ कि यह एकता बनावटी नहीं, बल्कि ऐसी स्थायी मैत्री है जो एक दूसरेके विचारों और आचार-व्यवहारके प्रति विशिष्ट आदरभाव और सहिष्णुतापर आधारित है। और मुझे ऐसा कोई भय नहीं है कि जब अंग्रेजोंका सुरक्षादायी हाथ मेरे ऊपरसे हट जायेगा तो अली-बन्धु या उनके मित्र मेरी स्वतन्त्रतापर हाथ डालेंगे या मेरे धर्मपर आघात करेंगे। और मेरी इस निर्भयताका प्रथम आधार तो ईश्वर और उसका यह आश्वासन है कि मेरी सृष्टिका जो जीव मुझसे डरकर चलनेकी कोशिश करेगा वह सर्वदा सुरक्षित रहेगा, और दूसरा आधार है अली-बन्धुओं और उनके मित्रोंका सच्चा और खरा आचरण; हालाँकि मैं जानता हूँ कि अली-बन्धुओंमें से कोई भी एक मुझ-जैसे बारह आदमियोंके लिए शारीरिक दृष्टिसे भारी पड़ेगा। और इस विशेष उदाहरणको मैंने सामान्य रूपसे सारे भारतपर लागू किया है और दिखाया है कि हिन्दू-मुस्लिम एकता तभी सम्भव है जब हममें पारस्परिक सहिष्णुता हो और अपने आपमें, और इसलिए सामान्य रूपसे मानव-प्रकृतिकी नेकीमें, विश्वास हो।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २०-१०-१९२१