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१३८. मोपला उपद्रवका मतलब

स्कॉटलैंडके एक सज्जनने इस बातपर मेरी खबर ली है कि मैंने इन स्तम्भोंमें मोपला विद्रोहपर काफी नहीं लिखा। वे कहते हैं, इसका परिणाम यह हुआ कि ग्रेट ब्रिटेनमें जो लोग भारतीय मामलोंमें दिलचस्पी रखते हैं वे यह मान बैठे हैं कि भारतमें एक इस्लामी सल्तनत कायम हो गई है। ऐसा नहीं कि यह फटकार सर्वथा अकारण है, किन्तु साथ ही यह बात भी नहीं है कि मैंने इस मामले में अपने कर्त्तव्यसे जी चुराया है। बात इतनी ही है कि मैंने यहाँ अपने आपको असहाय पाया है। मैं कालीकट जाकर झगड़ेकी तहतक पहुँचना चाहता था, और मेरा विश्वास था कि मैं ऐसा कर सकता था। लेकिन सरकारकी इच्छा कुछ और ही थी। मुझे दुःख के साथ यह मानना पड़ता है कि जो लोग मौकेपर मौजूद हैं वे इस उपद्रवको समाप्त नहीं करना चाहते हैं। इतना तो निश्चित है कि वे असहयोगियोंको इस फसादको शान्तिपूर्ण ढंगसे समाप्त करनेका श्रेय नहीं देना चाहते। वे एक बार फिर दिखा देना चाहते हैं कि भारतमें अगर कोई शान्ति कायम रख सकता है तो ब्रिटिश सैनिक ही; और तब मैं विरोध करनेके लिए सरकारके निर्देशोंकी अवज्ञा करके उपद्रवग्रस्त क्षेत्रोंमें नहीं जा पाया।

मौकेपर मौजूद लोगोंके बारेमें ऐसा कोई खयाल रखना मेरे लिए सुखकर नहीं। मेरा यह स्वभाव नहीं कि मैं मनुष्यको दुराचारी मानूँ। लेकिन मेरे सामने नौकरशाही के दुराचारके इतने प्रमाण उपस्थित हैं कि मैं मानता हूँ वह अपना लक्ष्य सिद्ध करने के लिए कुछ भी कर सकती है। मैं शब्दश: सच कह रहा हूँ कि चम्पारन जानेसे पहले चम्पारनके किसानोंके खिलाफ की गई बर्बरताकी जो कहानियाँ कही जाती थीं उनपर मुझे जरा भी विश्वास नहीं होता था। लेकिन जब मैं वहाँ गया तो मैंने स्थितिको, जितना बताया गया था उससे भी बदतर पाया। मैं यह कतई मान नहीं सका कि बिलकुल निर्दोष लोगोंको उस तरह बिना चेतावनी दिये नृशंसतापूर्वक मौतके घाट उतार दिया जा सकता था,―जैसा कि जलियाँवाला बागमें किया गया। मैं नहीं मान सका कि आदमीको पेटके बल रेंगनेको मजबूर किया जा सकता था। लेकिन पंजाब पहुँचकर मैंने आतंकित मनसे देखा कि जो-कुछ मुझे बताया गया था, उससे भी बुरी बातें हुई थीं। और यह सब कहनेको तो शान्ति और सुव्यवस्थाके नामपर किया गया था, लेकिन वास्तवमें उसका उद्देश्य था झूठी प्रतिष्ठा, एक झूठी प्रणाली और एक अस्वाभाविक व्यापार व्यवसायको कायम रखना। यह सत्य है कि एक शक्तिशाली लेफ्टिनेंट गवर्नरने चम्पारनमें प्रबल विरोध के बावजूद लोगोंको न्याय दिलाया। लेकिन, यह एक अपवाद था जो कुछ असाधारण कारणोंसे सम्भव हो पाया था। और इसलिए मैं समझता हूँ कि यह मोपला उपद्रव उस प्रणाली के लिए वरदान स्वरूप आया है जो अपनी ही विशालताके भारसे टूटती जा रही है।