पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/३६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३३६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

मोपला उपद्रव हिन्दुओं और मुसलमानोंके लिए एक परीक्षा है। हिन्दुओंके मैत्रीभावपर जो यह भार आ पड़ा है उसको क्या वह झेल पायेगा? क्या मुसलमानों-का अन्तस्तल मोपलोंके इस आचरणकी ताईद करता है? सत्य क्या है, यह तो समय ही बतायेगा। मजबूर होकर दार्शनिक भावसे इस होनीको मौखिक रूपसे स्वीकार-भर कर लेना हिन्दुओंकी मैत्रीकी सच्ची परीक्षा नहीं है। हिन्दुओंमें इतना साहस होना चाहिए, इतनी आस्था होनी चाहिए कि वे समझें कि ऐसे धर्मान्धतापूर्ण विस्फोटोंके बावजूद वे अपने धर्मकी रक्षा कर सकते हैं। और मुसलमानोंको तो स्वभावतः मोपलोंके ऐसे आचरणपर, इस तरह जबर्दस्ती लोगोंसे धर्म-परिवर्तन कराने और लूटपाट करने-पर लज्जा और अपमानका अनुभव करना ही चाहिए। उन्हें इतने शान्तिपूर्वक और कारगर ढंगसे काम करना चाहिए कि―धर्मान्धसे-धर्मान्ध मुसलमानोंके लिए भी ऐसे काम करना असम्भव हो जाये। मेरा अपना विश्वास तो यह है कि हिन्दुओंने आम तौरपर मोपलोंके इस पागलपनको बहुत शान्त और निरुद्विग्न भावसे ग्रहण किया है और सुसंस्कृत मुसलमानोंको पैगम्बरके उपदेशोंका मोपलों द्वारा इस तरह अनर्थ करनेपर सचमुच बड़ा दुःख है।

मोपला विद्रोहसे एक और भी सबक मिलता है―यह कि हर व्यक्तिको आत्म-रक्षाका कौशल सिखाना चाहिए। और इस दृष्टिसे हमारे शरीरको प्रतिकार करनेके लिए तैयार करनेकी बजाय हमारी मानसिक स्थितिको उसके उपयुक्त बनाना चाहिए। और अभीतक हमें जो मानसिक प्रशिक्षण दिया गया है, वह है ऐसी स्थितिमें अपने आपको असहाय महसूस करना। बहादुरी शरीरका नहीं, आत्माका गुण है। मैंने बहुत ही हट्टे-कट्टे और बलिष्ठ लोगोंको भी कायर पाया है और बहुत ही क्षीणकाय लोगोंको भी अद्भुत साहसी पाया है। मैंने दीर्घकाय और बलिष्ठ शरीरवाले कायर पुरुषोंको एक अंग्रेज छोकरेके सामने काँपते देखा है, और भरी हुई पिस्तौल सामने तनी पाकर दुम दबाकर भागते भी देखा है। मैंने एमिली हॉबहाउसको, पक्षाघातसे पीड़ित होनेके बावजूद, प्रबलतम साहसका परिचय देते देखा है। उस महिलाने अकेले ही बहादुर बोअर जनरलों और बोअर औरतोंके टूटते हुए साहसको कायम रखा। हममें से शारीरिक रूपसे दुर्बलसे-दुर्बल लोगोंको भी खतरोंका सामना करना और यह दिखा देना सिखाया जाना चाहिए कि हम किस धातुके बने हुए हैं। दोनोंमें से कौन-सी चीज अधिक घृणित थी, मोपला भाइयोंकी अज्ञानजनित धर्मान्धता, या उन हिन्दू भाइयोंकी कायरता जिन्होंने असहाय होकर कलमा पढ़ा, या अपनी शिखा काटने दी अथवा अपना वस्त्र बदलने दिया? कोई मेरी बातोंका गलत अर्थ न लगाये। मैं चाहता हूँ कि हिन्दू-मुसलमान दोनों ऐसे उद्वेगहीन साहसका विकास करें जिससे वे किसीको मारे बिना खुद हँसते-हँसते मर सकें। लेकिन अगर किसीमें ऐसा साहस न हो तो मैं चाहता हूँ कि वह खतरेका सामना होनेपर कायरतापूर्वक भाग जाने के बजाय मारने और मरनेकी कला सीखे। कारण, जो खतरेका सामना होनेपर भाग खड़ा होता है वह मानसिक रूपसे हिंसा करता है। वह भाग खड़ा होता है इसलिए कि उसमें अपने बैरीको मारते हुए खुद मर मिटनेका साहस नहीं है।