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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

क्या स्नातकको अपना जीवन देशसेवा के लिए समर्पित न करना चाहिए?

यह नियम सर्वदाके लिए लागू नहीं होता। जब राष्ट्रका संगठन धार्मिक रीतिसे होता है तब जो लोग प्रामाणिकताके साथ निर्भय जीवन व्यतीत करते हैं वे सब सेवा ही करते हैं।

हम यह मानते हैं कि सरकारी स्कूलोंमें दिये जानेवाले ज्ञानके साथ चरित्रका सामंजस्य नहीं होता, क्या इसका अर्थ यह नहीं कि राष्ट्रीय पाठशालाओंमें चारित्र्यको प्रधानपद मिलना चाहिए?

हाँ, बेशक यही अर्थ है। ज्ञान भी चारित्र्य के लिए दिया जाना चाहिए। ज्ञान साधन है, चारित्र्य साध्य है।

अतएव आप राष्ट्रीय शिक्षकोंमें चारित्र्यको आवश्यक मानेंगे?

जरूर।

इससे क्या मदिरापान करनेवाला और बीड़ी पीनेवाला शिक्षक त्याज्य नहीं है?

नीति सम्बन्धी हमारा धरातल इतना ऊँचा तो उठ ही चुका है कि हम शराब पीनेवाले शिक्षकोंका त्याग कर सकें। बीड़ीके लिए ऐसा कहनेकी हिम्मत मुझे नहीं होती। बीड़ी पीनेवाला दूसरी तरहसे शीलवान हो सकता है, ऐसा मेरा अनुभव है। और यह भी जरूरी है कि शीलपर नजर रखते हुए हम कहीं शील-शून्य चौकीदार न बन जायें।

मैट्रिक पास करते ही बीमार पड़ जाना और बी० ए० होते ही बेहाल हो जाना, यह हालत क्या शोचनीय नहीं है?

यदि मेरा वश चले तो मैं रोगी विद्यार्थियोंका अक्षर-ज्ञान बन्द ही कर दूँ।

क्या राष्ट्रीय शिक्षा पानेवाले विद्यार्थीकी समस्त शक्तियोंका विकास न होना चाहिए?

जरूर होना चाहिए। तन दुरुस्त तो मन दुरुस्त? और मन दुरुस्त होनेसे ही आत्मा दुरुस्त――यही सीधा नियम मालूम होता है।

२१ वर्षसे कम उम्र के विवाहित विद्यार्थियोंके राष्ट्रीय स्कूलोंमें दाखिल होनेपर क्या प्रतिबन्ध नहीं लगाया जाना चाहिए?

होना तो चाहिए। पाठशालाका विद्याभ्यास विवाहित जीवनका विरोधी है।

क्या ऐसी शिक्षा न दी जानी चाहिए कि विधुर दूसरा विवाह न करें?

हाँ, ऐसी शिक्षा कमसे-कम मुझे तो बहुत पसन्द है।

राष्ट्रीय स्कूलोंमें शारीरिक दण्डको स्थान मिलना चाहिए?

हरगिज नहीं।

अगर विद्यार्थीके मनमें राष्ट्रीय शिक्षाके प्रति तिरस्कार-भाव पैदा हो जाये तो इसमें दोष किसका है?

दोष आम तौरपर तो विद्यार्थी और शिक्षक दोनोंका होता है; परन्तु ज्यादातर शिक्षकका।