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क्या पाठ्यक्रम में भाषाओंको अधिक प्रमुखता नहीं दी जाती?

एक ही गोत्रकी अधिक भाषाए होनेसे बहुत बोझ नहीं मालूम होता। जैसे कि हिन्दुस्तानी, गुजराती, मराठी, बंगाली, इन चार भाषाओंको लोग, मेरा खयाल है, कम परिश्रम के साथ सीख सकते हैं। परन्तु अंग्रेजी, ग्रीक, लेटिन, अरबी इत्यादिका मेल नहीं बैठ सकता।

क्या शिक्षकका पद मंत्रीकी अपेक्षा बड़ा नहीं है? यदि वाइसरायका वेतन हजार रुपये हो तो क्या शिक्षकको दो हजार नहीं मिलना चाहिए?

वाइसरायकी नौकरीकी तो कीमत होती है; पर शिक्षककी कदापि नहीं होती। अतएव शिक्षक तो हमेशा गरीब ही होना चाहिए। उन्हें तो सिर्फ खाने-भरको लेकर पढ़ाना चाहिए। वाइसराय तो अपनी कीमत माँगता है; पर शिक्षक यदि कीमत माँगता है तो वह निकम्मा है।

एक अन्य प्रश्नकर्त्ताने भी मुझसे प्रश्न किया जो इसी विषयसे सम्बद्ध है। इसलिए उसे भी यहीं लिखे देता हूँ।

क्या शिक्षकको अपने पास पढ़नेवाली कन्यासे विवाह करना चाहिए? विद्यार्थीको अपने साथ पढ़नेवाली लड़कीके साथ शादी करनी चाहिए?

मुझे तो दोनों बातें अत्यन्त अनुचित जान पड़ती हैं। मेरे पास पढ़नेवाली कन्याकी रक्षा मेरी कन्याकी तरह होनी चाहिए। मेरे साथ पढ़नेवाली बालिकाकी रक्षा मेरी बहनकी तरह होनी चाहिए। सहाध्यायियोंमें भाई-बहनका निर्मल सम्बन्ध ही शोभा दे सकता है। यहाँ केवल इतना ही कहकर मैं इस सवालके जवाबको खतम कर देना चाहता हूँ। विषय बड़ा है इसलिए उसकी सविस्तार चर्चा ही करनी अधिक उचित होगी। पहले प्रश्नके विषयमें तो मुझे जरा भी शंका नहीं है। पर दूसरे प्रश्नमें, जब कि आज हजारों बालक-बालिकाएँ एक पाठशालामें शिक्षा पाते हैं, जरा कठिनाई नजर आती है। परन्तु मेरी स्थापित जितनी संस्थाएँ हैं उन सबमें इस नियमका पालन अनिवार्य रखा गया है और उसका फल भी अच्छा ही निकला है।

बुनकरोंकी खुशामद

एक मित्र लिखते हैं कि जिस तरह हम वकील, व्यापारी, विद्यार्थी आदिकी खुशामद कर चुके हैं उसी प्रकार यदि बुनकरोंकी खुशामद भी करें तो क्या ठीक न होगा? इस विषयपर मैं पहले ही लिख चुका हूँ और बार-बार इसकी चर्चा इसलिए नहीं करता क्योंकि बुनकरोंमें पढ़नेवाले लोग नहीं हैं। इसमें कोई शक नहीं कि अगर कारीगरोंमें और उसमें भी बुनकर वर्गमें देशसेवाकी प्रवृत्ति उदय हो जाये, तो हम स्वदेशीका काम बहुत जल्दी पूरा कर लें। देशमें लाखों बुनकर――हिन्दू और मुसलमान―केवल विदेशीका पोषण कर रहे हैं। वे लाखों रुपये के विदेशी सूतसे कपड़ा बुनते हैं। कुछ हमारी मिलोंके सूतको भी काममें लाते हैं। वे यदि सिर्फ हाथकते सूतको ही बुनने लगें और उसमें सुधार करते जायें तो आज देश चमक उठे और लोगोंके घरमें करोड़ों रुपया भर जाये।

यदि अकेले बुनकर लोग ही सचेत हो जायें और केवल हाथका ही कता हुआ सूत इस्तेमाल करें तो करोड़ों सूत कातनेवालोंको थोड़ा-थोड़ा लाभ हो; इतना ही नहीं