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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बल्कि उनके द्वारा लाखों पिंजारों या धुनियों, लाखों लोढ़नेवालों, और हजारों माडी देनेवालोंका धन्धा जीवित हो जाये, हजारों लुहार और बढ़इयोंकी आजीविकामें वृद्धि हो जाये। सम्पूर्ण स्वदेशीका अर्थ यह है कि देशमें केवल साठ करोड़ रुपये ही वापस न आ जायें, बल्कि उसके द्वारा दूसरे करोड़ों रुपयोंका उद्योग देशमें फैले और देशकी नष्ट हुई प्राचीन सुन्दर कलाएँ फिरसे सजीव हो उठें। आज तो हम केवल कलाहीन मजदूर बनकर ही रह गये हैं।

इस हालतमें यह बात तो हर कोई समझ सकता है कि बुननेवालोंको इस तरफ झुकाकर जनताकी सेवामें लगाना बड़े ही महत्वका काम है। उनको स्वदेश-कार्यमें शरीक करनेका अच्छेसे-अच्छा उपाय तो यह है कि हम खुद ही बुननेका काम करने लगें। हम अपने स्वार्थको लेकर बुनकर भाइयोंके पास जायें, यह एक बात है और उन्हींके भलेके लिए जायें, यह दूसरी बात है। उनका भला तो हम उनके धन्धेको सीखकर, उसके तत्त्व और विद्याको समझकर तथा वह बात बुनकरोंको समझाकर ही कर सकते हैं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २०-१०-१९२१
 

१४१. पत्र: ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ को

साबरमती
२१ अक्तूबर, १९२१

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्षका निर्णय और वक्तव्य मुझे मिल गया है और मैंने उनके सम्बन्धमें पण्डित मोतीलाल नेहरूका वक्तव्य भी पढ़ लिया है। मेरी विनम्र सम्मतिमें अध्यक्षके रुखका बिलकुल कोई औचित्य नहीं है; उसका समर्थन नहीं किया जा सकता। अध्यक्षके निर्णयके सम्बन्धमें अन्तिम निर्णय देना कांग्रेस महा-समितिका काम है। किन्तु ४ नवम्बरको अखिल भारतीय कांग्रेस समितिकी बैठक बुलानेके कार्यसमितिके प्रस्तावको रद करना या बदलना किसी भी तरह संवैधानिक व्यवहारके अनुकूल नहीं होगा। पण्डित मोतीलाल नेहरूने जो रुख अपनाया है मैं उसका पूरा समर्थन करता हूँ और मुझे आशा है कि कांग्रेस महासमितिके सभी सदस्य ४ नवम्बरको दिल्लीकी बैठकमें भाग लेंगे। मैं यह भी मानता हूँ कि अध्यक्ष पूरी ईमानदारीसे अनुभव करते हैं कि मद्रास और बंगालके चुनावोंमें हस्तक्षेप न करके कार्यसमितिने अनुचित काम किया है। साथ ही, कार्यसमिति भी उतनी ही ईमानदारीके साथ महसूस करती थी कि उसे हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था। अन्तिम निर्णय तो केवल कांग्रेस महासमिति ही कर सकती है।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २४-१०-१९२१