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१४२. आशावाद

आशावाद आस्तिकता है। सिर्फ नास्तिक ही निराशावादी हो सकता है। आशावादी ईश्वरका डर मानता है, विनयपूर्वक अपने अन्तर्नादको सुनता है, उसके अनुसार आचरण करता है और मानता है कि ‘ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है।’

निराशावादी कहता है कि ‘मैं करता हूँ’, अगर सफलता न मिले तो अपनेको छोड़ वह अन्य सब लोगोंको दोष देता है; भ्रमवश कहता है कि ‘किसे पता, ईश्वर है या नहीं’ तथा अपनेको भला और दुनियाको बुरा मानकर और यह कहते हुए कि मेरी किसीने कद्र नहीं की अन्ततः आत्मघात कर लेता है। और यदि न करे तो भी मुर्देकी तरह जीवन बिताता है।

आशावादी प्रेममें मगन रहता है। किसीको अपना दुश्मन नहीं मानता। इससे वह निडर होकर वन और नगरमें भ्रमण करता है। हिंसक जानवरों तथा उन जैसे मनुष्योंसे भी वह नहीं डरता; क्योंकि उसकी आत्माको न तो साँप काट सकता है और न पापीका खंजर भेद सकता है। शरीरकी तो वह चिन्ता ही नहीं करता। क्योंकि वह तो कायाको काँचकी गुड़िया समझता है और जानता है कि एक-न-एक दिन तो यह फूटने ही वाली है। इसलिए वह उसकी रक्षाके निमित्त संसारको पीड़ित नहीं करता, वह न किसीको परेशान करता है, न किसीकी हत्या करता है। वह अपने हृदयमें निरन्तर वीणाका मधुर गान सुनता है और आनन्द-सागरमें डूबा रहता है।

निराशावादी स्वयं राग-द्वेषसे भरपूर होता है। इसलिए वह हरएकको अपना दुश्मन मानता है और हरएकसे डरता है। अन्तर्नाद तो उसके होता ही नहीं। किसी मधु-मक्खीकी तरह वह इधर-उधर भिन्नाता हुआ बाहरी सुखोंका उपभोग करते हुए घूमता है और उससे ऊबकर रोज नया सुख खोजता है। और इस तरह प्रेम-रहित तथा मित्र-रहित होकर इस दुनियासे कूच कर जाता है; और उसके नामकी यादतक किसीको नहीं आती।

मेरे ऐसे विचार होने के कारण, मुझे उम्मीद है, कोई यह नहीं समझेगा कि मैंने कभी किसीसे यह कहा होगा कि यदि इस वर्ष स्वराज्य न मिला तो मैं आत्महत्या कर लूँगा। विषय-संगसे मुक्ति पानेके अलावा अन्य किसी प्रसंगपर आत्महत्याको मैं महापाप और कायरता मानता हूँ। और यदि हिन्दुस्तान स्वराज्य न प्राप्त करे तो भला मैं आत्महत्या क्यों करूँ? हिन्दुस्तानको गरज हो तो स्वराज्य ले। स्वराज्यकी कीमत हिन्दुस्तानको मालूम हो चुकी है, उसने स्वराज्यका स्वाद भी चख लिया है। अब, उसे गरज हो तो उसकी कीमत चुकाये और स्वराज्य ले। कोई दे या न दे, वह ले या न ले, इसके लिए मुझे आत्महत्या करनेकी क्या जरूरत है?

हाँ, एक बात मैंने अपने मित्रोंसे जरूर कही है। यह सच है कि मुझसे पूछा गया था कि यदि जनवरीमें स्वराज्य न मिला तो आप क्या करेंगे? मैंने कहा कि मुझे