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मिल मजदूरोंसे

 

हमारी भी ठीक यही दशा है। स्वदेशीका पालन किये बिना हमें आगे बढ़ने के लिए बल प्राप्त हो ही नहीं सकता। अतएव, मेरा जीवित रहना, मेरा समाजमें रहना, स्वदेशीपर ही अवलम्बित है।

आज मैं इसी तरह सोचता हूँ, यह है मेरी आजकी मनोदशा। कलकी बात तो परमात्मा जानता है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २३-१०-१९२१
 

१४३. मिल मजदूरोंसे

भाइयो,

दौरा पूरा करके मैं अहमदाबाद आया हूँ, तबसे सुन रहा हूँ कि शराब पीनेकी आदत और सब लोगोंमें तो कम हो गई है, लेकिन जिन दुकानोंपर मिल-मजदूर जाते हैं वहाँ तो धन्धा पहलेकी तरह ही चल रहा है। इतना ही नहीं वे स्वयंसेवकों की परवाह ही नहीं करते, उन्हें गाली देते हैं और मारते भी हैं। मुझे मालूम नहीं कि इसमें कितना सत्य है। मेरा विश्वास है कि मजदूर भाइयोंमें सैकड़ों लोग होंगे जो ऐसे व्यवहारको पसन्द नहीं करेंगे।

आपके लिए जो मेहनत कर रहे हैं वे इस आशासे मेहनत कर रहे हैं कि आप अच्छे बनें और सुखी हों, आप अपनी खराब आदतें छोड़ें, पैसा बचाना सीखें, कर्जदार न रहें, अच्छे घरोंमें रहें, आपके बच्चे पढ़े-लिखें, आप स्वच्छ रहें, आप स्वयं फुर्सतके समय अच्छी पुस्तकें पढ़ें, उनपर विचार करें और हर तरहसे समाजमें सुशोभित हों।

आपको मदद करनेवाले आपको सिर्फ अधिक वेतन अथवा बोनस आदि दिलवाकर सन्तोष मान लें, सो बात नहीं। आप यदि केवल वेतन बढ़ाने के लिए ही उनकी सेवाको स्वीकार करें और अपने जीवनमें सुधार न करें तो आप उनकी सेवाको खो बैठेंगे और आज जो जनमत आपकी तरफ है, वह भी आपका पक्ष नहीं लेगा।

आप अच्छे बनें इतना ही नहीं बल्कि आपको देशमें चल रहे आत्मशुद्धिके धार्मिक आन्दोलनमें भी भाग लेना चाहिए। आप खिलाफतके प्रति, पंजाबके प्रति और अपने स्वराज्य-सम्बन्धी कर्त्तव्यको समझें और उसका पालन करें। आप ऐसा करना चाहते हों तो आपको बुरी आदतें छोड़ देनी चाहिए। हम ईश्वरके नामपर लड़ रहे हैं। क्या ईश्वर शराबी, जुआरी अथवा विषयीकी मदद करनेवाला है? शराबी मुसलमान खिलाफतका क्या भला करेगा? शराबी हिन्दू अपने मुसलमान भाईकी क्या मदद करेगा?

मैं आपके मालिकोंसे जब-जब आपका वेतन बढ़ाने अथवा बोनस देने की बात करता हूँ तब-तब वे मुझसे कहते हैं, आप वेतन बढ़वाकर करोगे क्या? क्या मजदूर उससे अच्छी खुराक खायेंगे? अच्छे कपड़े पहनेंगे? अपने बच्चोंको पढ़ायेंगे? अथवा उससे वे ज्यादा शराब पीयेंगे? यह सुनता हूँ तब मेरा सर शर्मसे झुक जाता है।