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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आपको मुझे ऐसी विषम स्थितिसे उबार लेना चाहिए; और यह आप शराब छोड़कर ही कर सकते हैं।

आप पाठक तो सम्भवतः शराब नहीं पीते होंगे; तब आप अपने साथियोंके लिए कैसे जवाबदार हो सकते हैं? इस प्रश्नका उत्तर यह है कि साथीके लिए जवाबदार बनने में ही स्वराज्य है। आप ही अपने साथी मजदूरोंको समझा-बुझा सकते हैं, उनको सुधारनेका बोझ आपपर ही होना चाहिए और इस तरह अगर आप अपने बीच लगातार सुधार करते चले जायेंगे तभी वेतनमें वृद्धि और बोनस आदिकी बातें अच्छी लगेंगी। अगर आप सुधार नहीं कर सकते तो लोकमत हमेशाके लिए आपके साथ नहीं रह सकता; यह एक ऐसी बात है जिसे आप अच्छी तरह समझ सकते हैं। अतएव मुझे उम्मीद है कि आप शराबके इस दुर्गुणको खूब प्रयत्न करके निकाल डालेंगे।

आपका हितेच्छु,
मोहनदास करमचन्द गांधी

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २३-१०-१९२१
 

१४४. टिप्पणियाँ

यात्रा करनेकी शर्तें

गुजरातके विभिन्न भागोंकी यात्रा करने की माँगें निरन्तर मेरे पास आती रहती हैं। मुझे डाकोरजी आदि स्थानोंसे आमन्त्रण मिले हैं और पेटलाद और सोजित्रासे भी। लेकिन इस मासके अन्ततक तो मैंने इन सबसे क्षमा माँग ली है। बादमें, मुझे दिल्ली जाना है। वहाँसे वापस आनेपर मैं गुजरातमें थोड़ा घूमना-फिरना चाहूँगा। गुजरातसे मैं निराश नहीं हो गया हूँ। मुझे अब भी यह आशा है कि गुजरात इस धर्म-युद्धमें पूरा-पूरा बलिदान देगा और इसीलिए मैं यह आशा करता हूँ कि मुझे केवल उसी स्थानके लोग आनेको कहेंगे जहाँ स्त्री-पुरुष त्यौहार तथा अन्य सभी अवसरोंपर घर और बाहर खादी ही व्यवहारमें लाते हों। सभी लोग मेरे वक्तका ध्यान रखें, ऐसी मेरी कामना है। यदि एक जिला भी पूरी तरहसे तैयार होगा तो उसकी मार्फत हम अच्छी तरह संघर्ष चलाकर विजय प्राप्त कर सकेंगे और ऐसे जिलेमें मैं उस अवधिके दौरान रहने को तैयार हूँ। उस तैयारीकी शर्तें निम्नलिखित हैं:

१. वहाँके हिन्दू और मुसलमान परस्पर सगे भाइयोंके समान रहते हों―और ऐसा परस्पर डरके कारण नहीं, एक-दूसरेके प्रेमके कारण हो।

२. वहाँके हिन्दू मुसलमान, पारसी सब अन्तःकरणपूर्वक यह मानते हों कि खिलाफतमें हिन्दुस्तानकी मार्फत विजय केवल शान्तिमय युद्धसे ही सम्भव है।

३. वहाँके लोगोंको इस बातका अनुभव हो जाना चाहिए कि उनमें हिंसाकी भावनाके साथ ही फाँसीके तख्तेपर लटकनेकी हिम्मतका होना भी जरूरी है। और