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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेकिन उसे देशके अर्थ, लोकके अर्थ, चरखा चलाना ही चाहिए, नहीं तो ‘गीता’के वाक्यके अनुसार वह व्यर्थ ही जीता है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २३-१०-१९२१
 

१४५. भाषण: अहमदाबादमें स्वदेशीपर[१]

२३ अक्तूबर, १९२१

महात्मा गांधीने कहा: स्वदेशीके सम्बन्धमें अब काफी ज्यादा कहा-सुना जा चुका है, और अगर १२ महीनेतक दिन-रात समय-असमयका खयाल न किये बिना स्वदेशीका प्रचार करनेके बाद भी मैं इसपर लोगोंका विश्वास नहीं जमा पाया हूँ तब तो अब इस समय मेरे गला फाड़कर चिल्लाने से कोई फायदा नहीं; विशेष रूपसे इसलिए कि स्पष्ट है कि इस सभानें ऐसे कुछ व्यक्ति हैं जिन्होंने मेरे सन्देशको एक कानसे सुनकर दूसरेसे निकाल दिया है। मैं ‘नवजीवन’ के स्तम्भोंमें हर सप्ताह इस अपरिवर्तनीय सत्यको विविध रूपोंमें पेश करता रहा हूँ कि यदि हम भारतमें राम-राज्य स्थापित करना चाहते हैं तो स्त्रियोंको डटकर खादी पहनने का प्रयत्न करना चाहिए। मेरी समझमें राम-राज्यकी स्थापना के लिए इससे अच्छा दूसरा कोई साधन नहीं हो सकता। यदि आप सीताके पदचिह्नोंपर चलतीं तो आज भारतका इतिहास इससे बहुत भिन्न होता। सीताकी भावना बनवासके कष्टोंमें भी अविचल रही। वह अपनी इच्छासे वनमें गई थीं। यदि आज भारतकी स्त्रियोंमें वैसी ही दृढ़ता होती तो कुछ समयमें ही धर्म-राज्य स्थापित हो जाता।

यदि आप चाहती हैं कि लोग आपका वैसा ही आदर करें जैसा सीताका करते थे तो आप यह काहिली छोड़ दें और अधिकाधिक लगन और उत्साहसे चरखा चलाने में जुट जायें।

अपने सतत अध्यवसायसे चरखा चलाकर आप जो सूत कातेंगी उससे भारतके वस्त्रहीन लोगोंके तन ढकेंगे और इस देशपर आर्थिक गुलामीकी जो केंचुली चढ़ गई है, वह उतर जायेगी।

महात्मा गांधीने आगे कहा: सेवा करना स्त्रियोंके लिए एक प्रकारसे धर्म बन गया है। यहाँ हममें जो ग्रेजुएट पुरुष हैं वे देशकी मुक्तिके लिए उतना काम नहीं कर सकते जितना काम सेवाकी भावनासे अनुप्राणित स्त्रियाँ कर सकती हैं। भारतको ऐसे स्त्री-पुरुषोंकी जरूरत है जो मजदूरोंमें खुलकर आ जा सकें और उनके सुख-दुःखमें सम्मिलित हो सकें। आप भिखारियोंको बिना सोचे-समझे जो दान देती हैं उससे उनका

  1. यह सभा ‘अहमदाबाद राष्ट्रीय स्त्री-मण्डल’ के तत्त्वावधान में हुई थी