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१४९. टिप्पणियाँ

नगरपालिकाओ सावधान!

अहमदाबाद, सूरत और नडियादकी नगरपालिकाओंसे सम्बन्धित बम्बई सरकारकी टिप्पणीसे स्पष्ट हो गया है कि जो बात दिनके उजालेकी तरह बिलकुल साफ है, वह उसे भी देखनेको तैयार नहीं है। उसका तानाशाही लहजा जनताकी जागृत भावनासे मेल नहीं खाता। व्यक्तिगत रूपसे कर-दाताओंको नगरपालिकाके सदस्योंपर, जो मानते हैं कि उन्होंने अपना कर्त्तव्य निभाया है, मुकदमा चलाने के लिए उकसाना किसी भी तरह शोभनीय नहीं कहा जा सकता। सरकारके लिए सही रास्ता तो यह था कि वह नगरपालिकाओंको अपनी राह चलने देती और खुद आगे बढ़कर झगड़ा मोल नहीं लेती। लेकिन इस सरकारी टिप्पणीका उद्देश्य तो संकट पैदा करना ही है। सदस्योंको यह चुनौती स्वीकार करके सरकारको इस बातके लिए ललकारना चाहिए कि अगर हिम्मत हो तो वह नगर-पालिकाओंकी अवहेलना करके देखे। अगर नगरपालिकाएँ अपनी व्यवस्था ठीकसे न चलाना चाहें तो उन्हें वैसा करनेका भी अधिकार होना चाहिए। अगर किसी नगरकी व्यवस्था ठीक नहीं है तो उसमें कर-दाताओंकी गलती भी उतनी ही है जितनी कि नगरपालिकाके सदस्योंकी है। लेकिन हमारी बुद्धिमान सरकार एक ओर तो नगरपालिकाओंके स्वतन्त्र अस्तित्वको स्वीकार करती है और दूसरी ओर कानूनके शब्दार्थसे चिपटी रहना चाहती है, हालांकि यह शब्दार्थ भाव और असली तत्त्वको मारनेवाला होता है। यह सरकार नगरपालिकाओंको अपना शासन स्वयं चलाने देने के बजाय उस समयतक खुद ही उनका शासन चलाना चाहेगी जबतक कि वैसा करने में सरकारको कुछ खोना नहीं पड़ता। अब नगरपालिकाओं को यह चुनौती स्वीकार करके अपनी ओरसे उचित कार्रवाई करनेकी तैयारी करनी चाहिए। हो सकता है, सरकारको कुछ कर-दाताओंसे कुछ मुकदमे करवाने में कामयाबी हासिल हो जाये। वह जो कमसे-कम कर सकती है, वह यही है। और अधिकसे-अधिक वह यह कर सकती है कि सम्बन्धित नगरपालिकाओंको भंग कर दे। और अगर विरोध करने वालों का दल मजबूत लोगोंका दल है तो सरकारकी ऐसी कार्रवाईको स्वागत करने के लायक ही मानना चाहिए। अगर मान लिया जाये कि हाँ, वे इतने मजबूत हैं, तो उन्हें सीधे कर-दाताओंको यह समझाना चाहिए कि क्या कुछ हो रहा है, और संघर्षकी तैयारी करनी चाहिए। अगर सरकार ऐसी कोई कार्रवाई करे और नगरपालिका के सदस्यगण अपनी ओरसे कार्रवाई करने को तैयार रहें तो मुझे सरकारी टिप्पणीमें भी स्वराज्यकी झाँकी दिखाई देती है। जबतक नगरपालिकाओंको भंग नहीं किया जाता तबतक उन्हें सब अधिकार हैं; और उनके भंग किये जानेपर, अगर हम यह मान लें कि कर दाता लोग मजबूत और समझदार हैं और उनमें एकता है तो सरकार शक्तिहीन हो जायेगी। कर-दाताओंमें ये सारे गुण हैं, लेकिन उन्हें काम कर नेके लिए संगठित करनेकी जरूरत है। अभीतक जनता अफसरों और तथाकथित