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प्रतिनिधियोंके बीच फुटबालकी तरह ठोकरें खाती रही है। असहयोग वह चीज है जो जनताको इस खेलमें खिलाड़ीकी तरह शामिल होनेमें सक्षम बनाती है। प्रतिनिधिगण जनताका या तो सच्चा प्रतिनिधित्व करें अन्यथा वे समाप्त हो जायेंगे।

कांग्रेस अधिवेशन के दर्शक

कांग्रेसकी स्वागत समिति इस बार कांग्रेस अधिवेशनको विशुद्ध कामकाजी अधिवेशन बनाने के लिए कोशिश कर रही है। ऐसा करनेकी फिक्रमें उसने अपनी संख्या भी सीमित कर दी है और दर्शकोंकी भी। प्रतिनिधियोंकी संख्या सीमित कर देनेपर दर्शकोंकी संख्या सीमित न करना असम्भव था। इसलिए समितिके सामने―चुनावका एक तरीका ढूंढ़ निकालनेका सवाल था। इस दृष्टिसे एक ही पैमाना―यानी आर्थिक पैमाना―तय करना सम्भव था। कुछ विशिष्ट अतिथियोंको निःशुल्क टिकट देने की व्यवस्था भी करनी ही थी। इसके पीछे विचार सिर्फ दर्शकोंकी संख्या सीमित करनेका है, न कि पैसा जमा करनेका। यह पहली ही बार होगा कि इस वार्षिक जलसेका उपयोग वर्षभरके खर्चके लिए धन-संग्रह करने के लिए नहीं किया जायेगा। बहुत बड़े पैमानेपर तैयारी हो रही है, जिसमें प्रतिदिन आठ आनेके टिकटपर प्रदर्शनी, संगीत-सम्मेलन और आजके सभी जाने-माने वक्ताओं द्वारा सामयिक विषयोंपर व्याख्यान आदि देखने-सुननेका प्रबन्ध भी शामिल है। प्रतिबन्धक शुल्क कांग्रेस अधिवेशनमें सिर्फ दर्शकोंपर ही लगाया गया है। इसके पीछे विचार यह है कि दर्शक लोग अधिवेशन देखने के लिए अर्जियाँ देना बन्द करें। मैं चाहता हूँ कि जनता स्वागत समितिकी स्थितिको समझे। उसके कंधेपर नये संविधानके अन्तर्गत असाधारण परिस्थितियों में पहला अधिवेशन आयोजित करनेका भार आ पड़ा है। कांग्रेस अधिवेशनकी सफलता मुख्यतः जनताके प्रत्येक व्यक्तिके स्वेच्छाप्रेरित हार्दिक सहयोगपर ही निर्भर है।

खादीकी टोपीके खिलाफ जिहाद

कराचीके श्री धरमदास ऊधाराम लिखते हैं कि फोर्ब्स कैम्बेल कम्पनीने उन्हें खादी-टोपी पहननेकी हिमाकत करनेके आरोपमें अपनी नौकरीसे हटा दिया है। उन्हें मैं इस साहसके लिए बधाई देता हूँ कि उन्होंने बर्खास्तगी मंजूर कर ली लेकिन टोपी पहनना छोड़ने से इनकार कर दिया। अगर हमारा नैतिक बल टूट नहीं गया होता तो सभी क्लर्क, चाहे वे कहीं भी काम करते हों, एक ही साथ इसी तरह खादी टोपीको अपनाकर खुदको बर्खास्त करनेकी अपने-अपने मालिकोंको चुनौती देते। इसके परिणाम स्वरूप लोग सचमुच जो अवश्यम्भावी है उसे पहचान लेते और एक सर्वथा निर्दोष पहनावेके खिलाफ जिहाद बोलनेकी गलती उनकी समझमें आ जाती। दरअसल, यह जिहाद नौकरी करनेवालोंको आतंकित करने और उन्हें दब्बू, बल्कि पुंसत्वहीन बनाकर रखने के खयालसे बोला गया है। मद्रासमें लोक-शिक्षा निदेशक महोदय इंस्पेक्टरोंको स्कूलोंमें चरखेका प्रवेश करानेकी इजाजत नहीं दे रहे हैं―भले ही उसका कारण सिर्फ इतना हो कि निदेशक महोदयके अनुसार चरखेको राजनीतिक महत्व दिया जाता है। इस तर्कके आधारपर नशाबन्दीपर किसी भाषणको भी वर्जित मानना चाहिए, क्योंकि असहयोगियोंके लिए इसका एक राजनीतिक महत्व है। स्वदेशी-