पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/३९

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टिप्पणियाँ

मुझे आशा है कि वकीलोंका उत्साह सच्चा और स्थायी सिद्ध होगा। अदालतोंका यह बहिष्कार, फिर चाहे वह सरकारकी नीतिके खिलाफ, मात्र अपना विरोध प्रकट करनेके लिए ही क्यों न किया जा रहा हो, उन्हें और देशको लाभ पहुँचायेगा। व्यापारियोंकी समस्या के विषय में मैं यही सलाह दे सकता हूँ कि उनको स्वयं कोई ऐसा तरीका ढूँढना चाहिए जिससे वे प्रधान व्यापारियोंके जरिये अपने मालका निर्यात कर सकें। मुझे उम्मीद है कि बम्बईके व्यापारी भारत-भरके व्यापारियोंकी सहायता करेंगे और जितना अधिक माल निर्यात किया जा सकता हो, करनेकी कोशिश करेंगे। परन्तु मान लें कि इसकी कोई व्यवस्था नहीं हो पाती तो व्यापारी अपने मालको जिदसे न बेचें बल्कि केवल उन ग्राहकों को बेचें जो विदेशी ही खरीदने की जिद करें। मैं यह आशा तो नहीं करता कि सारा भारत अचानक ही विदेशी कपड़ेके उपयोगके त्यागके औचित्यको समझ लेगा और उसे कर्त्तव्यके रूपमें स्वीकार कर लेगा। अभी एक महीना शेष है और यदि अब विदेशी कपड़े या सूतकी और खरीद न हो तो इस अवधि में बहुत कुछ किया जा सकता है।

हिन्दू-मुस्लिम एकता

उन्नाव खिलाफत समिति के सभापति श्री सैयद मुहम्मद लिखते हैं :

आपके पत्रों में मुसलमानोंके कांग्रेस में शामिल न होनेके बारेमें जब-तब छिटपुट कुछ निकलता ही रहता है। मुझे इससे दुःख और चिन्ता होती है। खुदकी बात है कि जिलोंमें हिन्दू नेता आम तौरपर अपने मुसलमान पड़ोसियोंसे कुछ परायापन महसूस करते हैं और छोटे जिलोंमें हिन्दू और मुसलमान कार्यकर्ता व्यक्तिगत विज्ञापनको महत्वाकांक्षा रखते हैं और अपनी श्रेष्ठताका दावा भरते हैं, जो कि सच्ची एकताके लिए घातक है। फल यह है कि हिन्दू कार्यकर्त्ता खिलाफत आन्दोलन में शायद ही कोई सक्रिय भाग लेते हैं और इस तरह बीचको खाई चौड़ी होती जाती है। जहाँतक प्रचारके कामका सम्बन्ध है, कांग्रेस कमेटियोंने कुछ भी नहीं किया है, और वे समझती हैं कि उनका काम खिलाफत समितियोंसे बिलकुल भिन्न है। छोटे जिलोंमें यह दूषण बहुत शोचनीय है और पूरी एकताके लिए मेरे नितान्त सच्चे प्रयत्नोंके बावजूद हम सतही एकतासे अधिक कुछ नहीं पा सके हैं। हिन्दू एक बार एकताको इस शक्तिको समझ लें और महसूस करें तो में दावेके साथ कह सकता हूँ कि इस जिलेमें गो-बलि नगण्य रह जायगी। उनका अलग रहना ही हमारे लिए सबसे बड़ी रुकावट है।

यदि उन्नाव के हिन्दू खिलाफतके सवालके प्रति उदासीन हों, तो मुझे सचमुच बड़ा दुःख होगा। मुझे कोई सन्देह नहीं कि खिलाफतमें हिन्दू जितनी ज्यादा दिलचस्पी लेंगे उतना ही स्वराज्य निकट आयेगा। हमें याद रखना चाहिए कि अभी यह सम्भव नहीं कि हम खिलाफतके सिवा किसी अन्य रूपमें मुसलमानोंको स्वराज्यमें दिलचस्पी लेनेके लिए प्रेरित कर सकें। यह दुःखकी बात है, पर है सत्य। दोनों जातियाँ एक-