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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अलीने, जैसा कि उनके अन्यत्र प्रकाशित पत्रसे[१] प्रकट होगा, बड़ी तत्परतासे इस बातका विरोध किया है कि श्री त्यागीके कामको “अवज्ञा” (डिफायंस) कहा गया है। मेरी टिप्पणीके अन्तमें जो बचाव (डिफेंस) शब्द आया है, वह छपाईकी भूल है।[२] दरअसल यह “अवज्ञा” (डिफायंस) होना चाहिए था। ये प्रतिवाद मुझे बहुत अच्छे लगे हैं, क्योंकि मैं इन्हें राष्ट्रकी इस इच्छाका प्रतीक मानता हूँ कि जहाँ भूल हो, वहाँ वह उसे सुधारनेको आतुर है। मौलाना साहबको ऐसे किसी भी कार्यका श्रेय स्वीकार नहीं है जो संस्कृतिकी कड़ीसे-कड़ी कसौटीपर खरा न उतरे। और उधर बाबू भगवानदास मुझे किसी ऐसे कार्यके पीछे भयका दोष दिखानेकी इजाजत नहीं देंगे जिसे बहादुरोंकी अहिंसाके सर्वथा अनुकूल समझा जा सकता है। अब हम इस आशा और मंगल-कामनाके साथ यह विवाद बन्द करें कि हमारा देश बहादुर बने और विनयी तथा सर्वथा वीरोचित आचरण करनेवाला भी बने।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २७-१०-१९२१
 

१५०. पत्र-लेखकोंको

विशनदास चड्ढा: आपको और कहीं जानेसे पहले भारतके प्रमुख केन्द्रोंमें जाकर देशी कलाका अध्ययन करना चाहिए। आप देखेंगे कि जर्मनीके चरखेपर हमारे चरखेसे ज्यादा सुत नहीं काता जा सकता।

भगीरथ मिश्र: जब आप पूरी प्रणालीको बुरा समझकर उससे असहयोग कर रहे हैं, तब ऐसा नहीं हो सकता कि किसी दूसरी प्रणालीके आ जानेके कारण आप फिर पहलीवाली प्रणालीसे सहयोग करने लगें। उस हालतमें तो आपको दोनोंसे असहयोग करना होगा। मेरी इस “धमकी” का यही कारण है कि अगर भारतमें अहिंसा सर्वव्यापी हो जाये और उसीकी चपेटमें आकर मैं दुनियासे उठ न जाऊँ तो मैं हिमालयकी गुफाओंमें शरण ले लूँगा।

एम० एस० शंकररमण: विधि-विधान अक्सर ईश्वर पूजनमें सहायक होते हैं। प्रार्थना आत्माकी तीव्रतम अभीप्सा है और हमारे विकासके लिए सर्वथा अनिवार्य है।

बिन्दुमाधव: एक बारमें एक ही काम करो, यह सुनहरा नियम है। अगर हम कुछ वस्तुओंका वर्जन कर दें, तब जिन शेष वस्तुओंका वर्जन करना चाहते हैं उनका भी वर्जन सहज ही कर सकेंगे। जड़ काट देनेपर तना तो एक ही धक्केमें गिराया जा सकता है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २७-१०-१९२१
  1. देखिए “जेलसे लिखा एक पत्र”, २७-१०-१९२१।
  2. देखिए “टिप्पणियाँ”, १३-१०-१९२१ का उप-शीर्षक “उनकी विसंगति”।