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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रखा था, वही काफी चुभनेवाला था, लेकिन उसने उसके साथ-साथ एक या दो बार सीधे-सीधे तौहीन करनेवाली बातें भी कहीं; जैसे, "यहाँ पूरा 'कुरान' सुनानेकी कोई जरूरत नहीं है।" मौलाना निसार अहमद साहबके मुख्तसर-से बयानका हश्र भी कुछ अच्छा नहीं हुआ। और यह मजिस्ट्रेट कायदे-कानूनकी पाबन्दीकी तरफसे इतना लापरवाह था कि उसने मेरे बयानका बाकी हिस्सा, जो खुद उसीके कहनेपर मैंने शार्टहैंड-टाइपिस्ट मिलने पर उसे लिखकर देनेका वादा किया था, देखे बिना ही हमें सेशन-सुपुर्द कर दिया। लेकिन असलमें यह सब-कुछ तो तमाशा-भर था; क्योंकि दूसरे ही दिन जब अभी सबूत पक्षकी ओरसे गवाहोंके बयान लेनका काम आधा भी नहीं हो पाया था, उसने दो गवाहोंके नाम सम्मन जारी करनेके लिए सरकारी वकीलकी अर्जीपर यह हुक्म जारी कर दिया कि कार्यवाहीको व्यर्थ ही लम्बा करने से कोई फायदा नहीं है और इन गवाहोंको सेशन अदालतके सामने बुलानेसे काम चल जायेगा। मजिस्ट्रेट साहब काफी पहले ही अपनी राय कायम कर चुके थे! और २९ तारीखको जाँच पूरी होने से पहले ही खुद जुडीशियल कमिश्नर सेशन अदालतके लिए हालका मुआयना करने आये और सरकारी वकीलके साथ अगली योजनाओंके बारेमें चर्चा करते रहे। जैसा मैंने अदालतसे कहा, यदि फाँसीकी टिकटी तैयार करनेके लिए वे बढ़इयोंको भी भेज देते तो ज्यादा अच्छा होता! इस्लामी कानूनका जिक्र आते ही मजिस्ट्रेटका सब्र खत्म हो जाता और वह कहने लगता "इन फतवोंसे हमारा कोई सरोकार नहीं है।" शौकत इस कदर बौखला गया कि उसे उससे कहना पड़ा, "ऐसी छोटी-छोटी बातें मुझसे पूछनेसे क्या फायदा? मुझसे तो यह पूछो कि ऐसी हालतों में इस्लामी कानूनमें क्या व्यवस्था दी गई है।" लेकिन सब बेकार गया; यहाँतक कि खुद शौकत तक ज्यादा देर जब्त नहीं कर पाया और "पूरे तमाशे पर" लानत देने लगा। लेकिन क्या आप यह यकीन कर सकते हैं कि इस तहकीकातके पूरे होनेके फौरन बाद जब मजिस्ट्रेट कुछ वक्तके लिए हटा तो वह फिरसे एक नया ही आदमी बन गया। 'शौकतके खिलाफ दूसरे मुकदमे में और मेरे खिलाफ अगले मुकदमेमें वह फिर वैसा ही आदमी बन गया जैसा वह तीसरे दिन था। मैं यह नहीं बता सकता कि दूसरी बार यह कायापलट कैसे हुई। लेकिन आपको इस बातसे अदालत (जिसमें मुजरिम भी शामिल है) के "सामान्य" माहौलका अन्दाज हो जायेगा कि आखिरी दिन सरकारी वकीलने जल्दी-जल्दी मेरे पास आकर मुझसे कहा, "आपको एक बार फिर अदालतके सामने आने में तो कोई एतराज नहीं है? एक गवाहने गलत सबूत पेश कर दी है और मैं उसे दुबारा बुलाना चाहता हूँ।" मैं राजी हो गया और बोला, "आप जैसा कहें।" और जब खुफिया पुलिसके रिपोर्टरने दुबारा हलफ उठाकर यह कहा कि वह जो चीज दाखिल