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जेलसे लिखा एक पत्र

कर रहा है वह मेरी तकरीर ही है तो मैंन मजिस्ट्रेटसे खुशी-खुशी कह दिया कि क्योंकि पहले एक दूसरे ही दस्तावेजको कसम खाकर मेरी तकरीरके नामसे दाखिल किया गया था, इसलिए मैं गलतबयानीके इल्जामपर मुकदमा चलानेकी माँग करनेका अपना अधिकार उठा रखता हूँ, तो मजिस्ट्रेटने भी उतने ही खुशनुमा तरीकेसे मेरा शुक्रिया अदा कर दिया। असलियत यह है, जैसा कि हम सभी जानते हैं, मजिस्ट्रेट हमेशा स्वचालित यन्त्रकी तरह होता है (और उस घटनापूर्ण दिन मैंने उसे बता दिया था कि मुझे इस बातका बड़ा अफसोस है कि मेरे एक देशवासीको ऐसा गन्दा काम पूरा करनेके लिए इस्तेमाल किया जा रहा है), लेकिन मेरे बयान के दूसरे दिन वह बिलकुल "बँधा-बँधाया" सा आया। मुझे पता लगा है कि उसी दिनसे ऐसे लोगोंने भी, जिनसे उसे अपनी वफादारी और फरमाबरदारीके लिए शाबासी मिलने की उम्मीद थी, ऐसे ऐतिहासिक महत्वके मुकदमेको, जिसे नई व्यवस्थाके अधीन "इन्साफ" की मिसाल पेश करनेकी मंशासे चलाया गया था, कायदे-कानूनकी परवाह न करके बिगाड़ देनेपर उसके खिलाफ नाराजी जाहिर की है। इसलिए, स्थितिको जितना हो सके, सुधारनेके लिए इलाहाबादके रॉस एल्स्टन और आलिम आ रहे हैं और लाहौरसे एक योग्य दुभाषिया आ रहा है। लेकिन यह सब-कुछ तमाशा था और इसमें किसी भी बातसे सुधार नहीं हो सकता है। अपनी ओरसे गुस्ताखी करनेकी न कोई हमारी मंशा है और न हम शरारतपर आमादा हैं। न ही हम ऐसे ढोर बने रहना चाहते हैं जिन्हें जो जैसे चाहे हाँक ले; और अहिंसा भी ऐसी नरमी नहीं माँगती। अभी तो हिंसाके हामियोंको बहुत-सी बातोंका जवाब देना है और बहुतसे मुसलमानोंकी आँखें तो फैसलेके उस दिन खुलेंगी जब खुद उनके मामलेमें "हिंसाकी वास्तविक सीमा एक बार फिर तय की जायेगी। परन्तु अहिंसावादियोंको भी अभी काफी बातोंका जवाब देना है और मुझे तो अभीसे दिखाई पड़ रहा है कि 'अहिंसाका देवदूत' अहिंसाके उन कमजोर समर्थकोंका भ्रम दूर करने में लगा हुआ है जो कायरताको अहिंसाका नाम देने की कोशिश करते हैं।"

और अब अलविदा। देवदास और छोटे बच्चोंको प्यार और 'बा' को स्नेहपूर्ण सलाम।

वह चेक खिलाफत-कोषके लिए ही भेजा गया होगा। मेरी माँ और बीवीको किसी माली इमदादकी जरूरत नहीं है लेकिन हम ऐसे भिखारी हैं जो अपने उसूलके लिए सब-कुछ हज्म कर जायेंगे। खुद आपको हमारा प्यार-भरा सलाम।

हमेशा आपका,
मुहम्मद अली