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असहयोगका रहस्य

साथ ही उसके प्रतिनिधि कहे जा सकेंगे। किन्तु यदि हम लोगोंको दबाव डालकर अपने दलमें शामिल करेंगे तो हम ऐसा करके अपने उद्देश्यको भ्रष्ट करेंगे और ईश्वरसे विमुख होंगे। और यदि हमें इसमें सफलता मिली दिखे तो वास्तवमें हम एक अधिक बड़ी निरंकुश सत्ताको स्थापनामें ही सफल होंगे।

अगर हम असहिष्णुता दिखाकर दूसरोंको अपना मत प्रकट न करने देंगे तो हम अपने उद्देश्यकी पूर्तिमें बाधा डालेंगे। क्योंकि उस अवस्थामें हम यह कभी न जान सकेंगे कि कौन हमारे साथ है और कौन खिलाफ है। इसलिए सफलताकी सबसे अनिवार्य शर्त यही है कि हम लोगोंको अपनी राय ज्यादासे-ज्यादा आजादीसे प्रकट करने के लिए उत्साहित करें। हम अपने वर्तमान ‘अधीश्वरों’ से कमसे-कम इतना सबक तो सीख ही सकते हैं। उनकी दण्डसंहितामें उन विचारोंके लिए कड़ीसे-कड़ी सजाएँ रखी गई हैं जिन्हें वे पसन्द नहीं करते हैं। और उन्होंने हमारे कुछ निहायत शरीफ देशभाइयोंको महज इसलिए गिरफ्तार किया है कि उन्होंने अपनी राय प्रकट की है। हमारा यह असहयोग उस शासन प्रणालीका खुल्लमखुल्ला विरोधी है। अतएव हम खास इसी लड़ाईमें, जिसे हम मत-प्रकाशनकी पाबन्दीके खिलाफ लड़ रहे हैं, खुद ही दूसरोंकी रायपर उस पाबन्दीको लगानेका अपराध न करें। इन विचारोंके प्रकट करनेका कारण यह है कि जब कोई सज्जन हमारे मतके प्रतिकूल अपनी राय प्रकट करते हैं तब उनका नाम प्रकाशित करनेमें मुझे बड़ी बेचैनी मालूम होती है। मैं इन लोगोंको उन पाठकोंकी मानसिक हिंसाका भाजन नहीं बनाना चाहता जो उनके मतोंको पसन्द न करते हों। हमको इतना साहस और उदारता अवश्य रखनी चाहिए कि हम खुद अपने प्रति तथा अपने विषयमें कही गई तमाम गन्दी बातोंको सुन और पढ़ सकें। इससे हमें उनके विचारोंको बदलनेका मौका मिलता है। मुझे एक पत्र लेख कने एक बहुत बड़ी प्रश्न-सूची भेजी है; मैं यह प्रयत्न इस पत्रलेखकसे ही आरम्भ करना चाहता हूँ। प्रश्न हमारे प्रचलित आन्दोलनके सम्बन्धमें किये गये हैं और सार्वजनिक रूपसे चर्चा किये जाने के योग्य हैं। लेखकने आरम्भ इस प्रकार किया है―

आप इस बातको स्वीकार करेंगे कि आपको माननेवाले और न माननेवाले दोनों तरहके लोग आपकी राजनैतिक हलचलोंके उद्देश्यके सम्बन्धमें अनिश्चयको अवस्थामें हैं। इसलिए क्या आप नीचे लिखे प्रश्नोंका उत्तर देकर उनका भ्रम दूर करनेकी उदारता दिखायेंगे?

१. क्या आप वाकई महात्मा हैं?

मुझे तो नहीं मालूम होता कि मैं महात्मा हूँ। हाँ, यह मैं जरूर जानता हूँ कि मैं ईश्वरकी सृष्टिका एक अति विनम्र जीव हूँ।

२. अगर आप महात्मा हैं तो क्या आप “महात्मा” शब्दकी परिभाषा बतायेंगे?

किसी महात्मासे मेरा परिचय नहीं, अतः मैं उनकी परिभाषा नहीं बता

सकता।

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