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असहयोगका रहस्य

मेरी खुली-चिट्ठी देखिए)[१] असहयोगकी बात पंजाबके अन्यायको निश्चित स्वरूप मिलने के पहले १९१९ में ही दिल्लीमें उठ चुकी थी। जब यह बात साफ हो गई कि पंजाब के अत्याचारोंके लिए तेज इलाजकी उतनी ही जरूरत है जितनी कि खिलाफतके लिए है, तब दोनोंका गठबन्धन कर दिया गया।

२०. क्या आप बता सकते हैं कि जब दूसरे मुसलमानी देशोंके मुसलमान खिलाफतको चिन्ता करते दिखाई नहीं देते तब भारतके ही मुसलमान क्यों इतना जोश दिखाते हैं?

मैं यह बात नहीं जानता कि भारतके बाहरके मुसलमान खिलाफतकी चिन्ता नहीं करते; परन्तु अगर वे उसकी चिन्ता नहीं करते और भारतीय मुसलमान करते हैं तो मैं तो इसे इस बातका सबूत समझता हूँ कि भारतके मुसलमानोंमें बाहरी मुसलमानोंकी अपेक्षा धार्मिक चेतना अधिक विकसित हुई है।

२१. टर्कीके सुलतानने मुसलमानोंके तीर्थस्थानोंकी रक्षा नहीं की; क्या तब भी वे खलीफा माने जानेका हक रखते हैं?

इस सवालका जवाब देना एक हिन्दूके लिए ठीक नहीं है। तथापि अगर मैं उत्तर देनेकी धृष्टता करूँ तो तुर्कीने खिलाफतकी रक्षा सैकड़ों वर्षोंतक बड़ी दिलेरीसे की है और इसीलिए उसपर उनका अधिकार है। सुलतानने चाहे गफलत की हो; परन्तु तुर्कांने तो नहीं की है। खिलाफत आन्दोलन किसी व्यक्तिके लिए नहीं किया जा रहा है; बल्कि एक भावनाके लिए किया जा रहा है। इसमें उसके भौतिक, आध्यात्मिक और राजनैतिक तीनों रूप आ जाते हैं। यदि तुर्क उसकी रक्षा नहीं कर सकते, और दुनिया के मुसलमान अपने मत-बल या सक्रिय सहानुभूतिसे तुर्कीका साथ नहीं देते तो इससे दोनोंकी ऐसी क्षति होगी कि फिर उसकी पूर्ति कभी नहीं हो सकेगी। और अगर ऐसा हुआ तो यह सारे संसारके लिए एक घोर विपत्ति होगी, क्योंकि मेरा यह विश्वास है कि इस्लाम भी दुनियामें अपना वैसा ही स्थान रखता है जैसा कि ईसाई-धर्म तथा दूसरे मजहब रखते हैं। शूरताका तकाजा है कि इस विपत्तिके मौकेपर तुर्कोंकी सहायता की जाये।

२२. क्या अर्थशास्त्रका यह नियम गलत है कि मनुष्यको अच्छीसे-अच्छी और सस्तीसे-सस्ती चीजें ही खरीदनी चाहिए?

आधुनिक अर्थशास्त्रियोंका यह सिद्धान्त एक अत्यन्त निष्ठुर सिद्धान्त है। हम सदा किसी ऐसे स्वार्थपूर्ण विचारसे मानवीय व्यवहार चलाते भी हैं। (मिसालके तौरपर) एक अंग्रेज कोयलेकी खानमें इटलीके कम मजूरी लेनेवाले मजदूरको छोड़कर अंग्रेज मजदूरको ही नौकर रखता है और उसे ज्यादा मजूरी देता है। (और यह ठीक भी है)। इंग्लैंडमें सस्ते मजदूर लानेकी जरा भी कोशिश करनेसे अवश्य ही क्रान्ति हो जायेगी। किसी ज्यादा वेतन पानेवाले परन्तु वफादार नौकरको इसलिए निकाल देना कि दूसरा उससे अच्छा और सस्ता नौकर मिल सकता है, मेरी नजरमें

  1. देखिए खण्ड १६।