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१५६. भाषण: अहमदाबादमें स्वदेशीपर

२९ अक्तूबर, १९२१

भाइयो और बहनो,

आज मुझे एक भी शब्द नहीं कहना है। मैं नये शब्द ढूँढ़ भी नहीं सकता। मेरी मानसिक स्थिति मुझे कहीं भी भाषण देने अथवा जुलूसमें भाग लेने के लिए जानेकी अनुमति नहीं देती और फिर बम्बई, अहमदाबाद अथवा गुजरातमें मुझे भाषण देने अथवा जुलूसमें भाग लेने के लिए जाने की जरूरत भी क्या है?

मैं गुजरातमें रहता ही नहीं ऐसा जानकर ही आप लोगोंको काम करना चाहिए। अगर अभी भी गुजरातके लोगोंको मुझसे बल प्राप्त करने की आवश्यकता जान पड़ती हो तो मुझे स्वीकार करना चाहिए कि इस वर्ष स्वराज्य नहीं मिलनेका। स्वराज्यका अर्थ ही यह है कि गुजरात अपने पाँवपर खड़ा हो और मुझे भी भूल जानेके लिए तैयार हो। बालक अथवा वृद्ध, सब ऐसी निर्भयताका प्रदर्शन करें कि अच्छे और बड़ेसे-बड़े व्यक्ति भी अगर जेल चले जायें अथवा उनका पतन हो जाये तो भी वे डरें नहीं और कहें कि गांधी द्वारा शुरू की गई यह लड़ाई अब हमारी है, भले ही वह पागल हो गया हो और उसकी बुद्धि भ्रान्त हो गई हो लेकिन हम तो वैसा कदापि नहीं करेंगे। जब ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाये तभी स्वराज्य हुआ कहा जा सकता है।

मुझे जब यहाँ आनेके लिए कहा गया तब मैंने कहा कि वल्लभभाईसे पूछो। मैं तो इस नेताकी इच्छाके अधीन हूँ। मुझे आज यहाँ बोलना है अथवा नहीं, इसकी खबर तो उस नेताको ही है जो आज सारे गुजरातको हिला रहा है। उनकी इच्छाकी अवगणना करके मैं कभी कोई काम नहीं कर सकता। मैं उन्हें सलाह दे सकता हूँ, उनके सामने सुझाव रख सकता हूँ, लेकिन उनकी इच्छाके विरुद्ध जाकर मैं कोई काम नहीं कर सकता। किसीका भी विश्वास न करना, यह बुद्धिका पहला लक्षण है लेकिन किसीका विश्वास करने के बाद तो सब-कुछ उसीपर छोड़ देना चाहिए; इसके बाद नुक्ताचीनी करते रहनेसे काम नहीं चलेगा।

और तो मैं आज आपसे क्या कहूँ? मुझे जो कहना था सो तो मैंने इतनेमें ही कह दिया। भट्टी सुलगाना मुझे अच्छा लगता है। आप मुझसे भले किसी भी भट्टीमें दियासलाई लगानेको कहें तो मैं लगा दूँगा। मैं अहिंसावादी हूँ। मेरी रग-रगमें अहिंसा और प्रेम समाया हुआ है। किसीका अनिष्ट करनेकी मेरी इच्छा नहीं है। मैंने कभी किसीका बुरा नहीं चाहा है, कभी किसीको मारनेका विचार नहीं किया है। मैं अहिंसावादी हूँ तथापि विदेशी कपड़े जलाना मुझे प्रिय है क्योंकि जब हम विदेशी कपड़ा जलाते हैं तब हम पाप नहीं करते बल्कि आत्मशुद्धि करते हैं। नहाने, खाने अथवा रसोई बनाने में भी पाप तो है। उसी प्रकार विदेशी कपड़े जलानेमें पाप भले ही हो, लेकिन आज इसके बिना काम नहीं चल सकता। श्वासोच्छ्वास लिए बिना,