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भाषण: अहमदाबादमें स्वदेशीपर

पानी पिये बिना अथवा भोजन बनाये बिना गुजारा नहीं होता―ये सब तो अनिवार्य हैं, ऐसा समझकर हम पाप होते हुए भी ये सब काम करते ही हैं। हिन्दू तो शरीरके बन्धनसे छूट जाना भी पसन्द करते हैं, लेकिन इसके लिए कोई आत्महत्या नहीं करता।

आज गुलामीकी जंजीरको तोड़नेके लिए इसके सिवा अन्य कोई रास्ता नहीं है। हम तो उसे, सम्भव हो तो स्वदेशीके बिना भी तुरन्त तोड़ डालना चाहेंगे। लेकिन यह कैसे हो सकता है? खुद गुजरातके प्रमुख नगरमें ही जबतक कुछेक भाई और बहन विदेशी सूतके बने कपड़े पहनकर जुलूसमें अथवा सभामें आनेका साहस रखते हैं, तबतक यह बात कैसे हो सकती है? मिलके कपड़े भी कोई हमारे लिए नहीं, वरन् गरीबोंके लिए हैं। मिलके कपड़ोंको अपने लिए रखकर अगर हम गरीबोंको खादी देने जायेंगे तो वे हमसे पूछेंगे, ”आप क्यों खादी नहीं पहनते? हमें मोटी खादी देते हो और आपका तो अच्छी और महीन मलमल, जगन्नाथी और केलिकोके बिना नहीं चलता।” मैं कह चुका हूँ कि जिसे गरीबोंकी सेवा करनी है उसे शृंगार-मात्रका त्याग कर देना चाहिए। उस समय ऐसी स्थिति आयेगी कि गरीब दलील पेश नहीं कर सकेगा, वह मिलका कपड़ा नहीं माँगेगा। वह शर्मिन्दा होगा और कहेगा कि हमें भी खादी दो।

लेकिन अहमदाबादमें तो हजारों स्त्रियाँ और पुरुष अब भी विदेशी कपड़े पहनते हैं। इसके अतिरिक्त स्त्रियोंके दिलोंमें तो अनेक विचित्र भावनाएँ उठती रहती हैं; उदाहरण के लिए, वे सोचती हैं कि अगर हम आजतक पहने वस्त्रोंको जला देंगी तो यह अपशकुन होगा। भला मैलको जलानेमें क्या अपशकुन हो सकता है? मैलका संग्रह भी कैसे किया जा सकता है? धर्मको उलटी दृष्टिसे देखनेका ही यह परिणाम है। घरके सड़े हुए अनाजका संग्रह नहीं किया जाता, तो फिर जो विदेशी कपड़ा हमारी गुलामीका परिचायक है उसका संग्रह भी कैसे किया जा सकता है?

अब हमारे सामने पूरे दो महीने भी नहीं रह गये हैं। दिसम्बरकी २५ तारीखको कांग्रेसका अधिवेशन होगा। अगर उस समयतक हम स्वराज्यके झंडेको न फहरा सके तो कांग्रेस बुलाना किस कामका? यह कार्य हम किस तरह कर सकते हैं? मैंने वल्लभभाईसे कहा कि चित्तरंजन दासने कांग्रेसकी अध्यक्षताको स्वीकार करनेका तार नहीं दिया, उसका कारण है। वह बंगालको शर्मिन्दा करना चाहते हैं। वे बंगालसे कह रहे हैं कि “आप मुझे बंगालसे दूर भारतके पश्चिमी छोरको भेज रहे हैं, तो वहाँ जाकर मैं क्या हिसाब दूंगा? मैं बंगालको शमिन्दा नहीं करना चाहता। समस्त भारतने कांग्रेसके अध्यक्ष-पदके लिए बंगाली को चुना है, इसका क्या कारण है? वह कारण यही हो सकता है कि बंगालमें कुछ तो ऐसा होगा, जिससे बाहर भी उसकी कीमत आँकी जाती है?” देशबन्धु दास इस तरह बंगालसे विनती कर रहे हैं। उनका तार भेजना [या न भेजना] इस बातपर निर्भर है कि लोग उनकी इस विनतीका क्या उत्तर देते हैं।

जिस तरह अली-भाई अमृतसरकी कांग्रेसमें अन्तिम क्षणोंमें हाजिर हो सके उसी तरह अगर हम अहमदाबादकी कांग्रेसमें अली-भाई, मौलाना मुजद्दिद और अन्य