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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लोग जो जेल जाने की तैयारीमें हैं अथवा जा चुके हैं―ऐसे सब असहयोगियोंका स्वागत नहीं कर सकते तो हमारा कांग्रेसका आयोजन करना किस कामका?

जैसा कि मैंने बम्बईमें कहा है, अगर यह होली हृदयमें सुलग रही होलीकी परिचायक है तो अच्छी है। बालक जिस तरह पटाखे चलाकर खुश होते हैं अगर हम भी उसी तरह होली जलाकर खुश हों तो इससे हमें क्या हासिल हो सकता है? अगर ऐसा हो तो यह होली व्यर्थकी ज्वाला है, निरा उत्पात है। लेकिन अगर यह हृदयमें सुलगती होलीकी परिचायक है तो मैं पूछूंगा कि आज जो बहनें इस सभामें विदेशी कपड़े पहनकर आईं हैं, क्या वे ऐसा साहस कर सकती थीं?

घरकी रोटी मोटी-पतली, चाहे कैसी भी क्यों न हो, खाकर जिस तरह लोग सन्तुष्ट होते हैं उसी तरह जब बहनें मोटी-महीन, जैसी मिले वैसी, खादी पहनने लगेंगी और मुझसे पूछेंगी कि मुहम्मद अली और शौकत अली क्यों नहीं छूटे, अन्य योद्धा क्यों नहीं छूटते, स्वराज्य क्यों नहीं मिलता, तब मैं कहूँगा कि स्वदेशीमें अब कुछ दम नहीं है। तब मैं आपको कोई और उपाय बताऊँगा। आज तो हिन्दुस्तान, गुजरात अथवा अहमदाबादमें कोई मुझसे प्रश्न नहीं कर सकता।

हममें खूब जागृति आ गई है, खादीका उपयोग भी बहुत बढ़ गया है, यह सव सही है, लेकिन अगर मुझसे पूछा जाये कि अहमदाबादमें ऐसे कितने लोग हैं जिन्होंने सारे विदेशी कपड़े जला दिये हैं तो मैं कहूँगा कि मैं नहीं जानता। लेकिन ऐसे लोग दस-बारहसे ज्यादा नहीं होंगे। पूरे गुजरातमें हजार-एक बहनें खादी पहनने लगी हैं, लेकिन उससे क्या? सारे गुजरातमें एक हजार स्त्रियाँ किस गिनतीमें आती हैं? गुजरातमें कितने स्त्री-पुरुष समय मिलनेपर चरखा चलाते हैं?

डा० राय लिखते हैं कि मेरे कारखाने में सब स्त्री-पुरुष चरखा चलाने लगे हैं और वे कहते हैं कि चरखेमें जो चमत्कार दिखाई दिया है वह अन्य यन्त्रोंमें कभी नहीं देखा। क्या अहमदाबादके स्त्री-पुरुषोंने स्वराज्यके लिए इतना किया है कि वे मुझसे स्वराज्यके बारेमें प्रश्न पूछ सकें?

स्वदेशी करोड़ोंके लिए कल्याणकारक है, हिन्दू-मुस्लिम एकताकी निशानी है, गरीब लोगोंके प्रति दयाभावकी सूचक है। नेताओंके पकड़े जानेपर हमें सरकारी इमारतें जलाने अथवा मारपीट करनेकी बात कभी नहीं सूझनी चाहिए। अगर सरकार मुझे इस सभासे पकड़कर ले जाना चाहे तो ऐसी स्थिति होनी चाहिए कि एक सिपाही भी सबके बीचसे मुझे निर्भयतापूर्वक ले जा सके। उस समय किसीकी आँखसे आँसू न टपके, बल्कि तब सबके चेहरोंपर अधिक कान्ति आ जाये और सब समझें कि हाँ, अब स्वराज्य आया।

उस समय सब अपने विदेशी कपड़े निकाल फेकें, बहनें अपनी लाज ढकनेके लिए जितना कपड़ा शरीरपर चाहिए उतना पहने रहें, बाकी सब यहाँ छोड़ती जायें और अन्य कपड़ोंको घर जाकर उतार दें। जिस प्रकार किसी अस्पृश्य वस्तुके छू जाने पर स्त्रियाँ नहा डालती हैं उसी तरह बहनोंको चाहिए कि वे विदेशी कपड़ोंके स्पर्श से बचें, उन्हें छुएँ तो नहा डालें और फिर कभी उन कपड़ोंको न पहननेका निश्चय करें।