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टिप्पणियाँ

मुझे आशा है कि मद्रासके कार्यकर्त्ता इस पत्र में जिस कुप्रथाकी शिकायत की गई है, उससे निपटेंगे। पत्रलेखककी तरह मुझे भी मद्रासकी अपनी अगली यात्राके बारेमें अब डर सा लग रहा है कि तमिल स्त्रियोंको रेशमी साड़ियोंका बहुत मोह है। मद्रास जैसी गरम जलवायु में रेशमसे बढ़कर दूसरा हानिकर वस्त्र नहीं है। और हमारे निर्धन देशमें एक साड़ीपर सौ रुपये खर्च करना धनका ऐसा अपव्यय है जिसे अपराध ही कहा जा सकता है। इस मामलेमें पुरुष भी समान रूपसे दोषी हैं क्योंकि वे हाथकी बुनी पगड़ियों, धोतियों और अंगवस्त्रमें मान समझते हैं, और यह भूल जाते हैं कि इन सभीमें सूत तो विदेशी ही होता है। आश्चर्य तो होगा परन्तु पसीनेको अपने भीतर सोख लेनेवाली खादी इन सब सुन्दर वस्त्रोंसे, जिनपर पुरुषोंको इतना नाज है ज्यादा ठंडी होती है। लेकिन मुझे आशा है कि मेरा यह विश्वास कि तमिल लोग आध्यात्मिक विषयोंमें रुचि रखते हैं, स्वदेशी जैसे टेढ़े मामलेमें भी सही सिद्ध होगा और वे विदेशी वस्त्रके पूर्ण बहिष्कार और चरखेको स्वीकार करनेकी नैतिक आवश्यकताको समझेंगे। मद्रास और आन्ध्रके मैदानोंकी गर्मीमें कोई दूसरा उद्योग उतना सहायक नहीं हो सकता जितना कि मधुर-मन्थर गतिवाला चरखा। द्रविड़ देश भारत के बाहर गुलामीका जीवन बिताने के लिए सबसे ज्यादा प्रवासी भेजता है। चरखेकी पुनःस्थापनासे लाचारीके प्रवासकी यह कठिन समस्या अपने-आप सुलझ जाती है। केवल जमीन भारतकी निर्धन किसान जनताका भरण-पोषण नहीं कर सकती, चाहे उन्हें लगान न भी देना पड़े।

वकालतमें लगे हुए वकील

ऐसे वकीलोंके विषयमें जिन्होंने वकालत नहीं छोड़ी है पर फिर भी कांग्रेस कमेटियोंमें भिन्न-भिन्न पदोंपर काम कर रहे हैं, मेरे पास बराबर पत्र आ रहे हैं। जबसे मैं बंगाल में आया हूँ तबसे तो यह सवाल मुझसे और भी आग्रह के साथ पूछा जा रहा है। दुबरीके एक भूतपूर्व विद्यार्थी लिखते हैं कि क्या आप उन वकीलोंके नेतृत्वमें, जो अब भी वकालत कर रहे हैं, इस आन्दोलनके सफल होनेकी आशा रखते हैं। यदि स्वार्थ त्यागपर आधारित यह आन्दोलन ऐसे वकीलोंके नेतृत्वमें चलता है जो स्वार्थ-त्यागमें विश्वास नहीं करते तो उसके सफल होनेकी आशा मैं नहीं करता। बल्कि मैंने तो निःसंकोच यह राय दी है कि ऐसे वकीलोंको, चाहे वे बड़ी योग्यता रखनेवाले हों तो भी, अपना अगुआ बनानेके बजाय तो यह बेहतर है कि मतदाता लोग उनसे कम योग्यता रखनेवाले दूसरे लोगोंको अपना नेता बनायें। किसी डरपोक और शक्की वकीलकी बनिस्बत तो मैं खयाल करता हूँ कि कोई बहादुर और निष्ठावान मोची या जुलाहा निःसन्देह बहुत अच्छी तरह नेताका काम कर सकता है। क्योंकि सफलता तो वीरता, त्याग या कुर्बानी, सत्य, प्रेम और विश्वासपर अवलम्बित है-- कानूनी ज्ञान, बौद्धिक कुटिलता, कूट-नीति, द्वेष और अविश्वासपर नहीं।

रोटीका सवाल

इसी विद्यार्थीने एक सवाल और उठाया है। वे कहते हैं कि बहुतेरे बंगाली रोटीकी समस्या के कारण राष्ट्रीय कार्य नहीं कर पाते या ऐसा कहें कि अपनी गुलामी