पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/४११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३७९
भाषण: अहमदाबादमें स्वदेशीपर

 

गुजरातमें पड़ा हुआ मैं लोगोंको लगातार अपनी प्रार्थना सुनाता हुआ घूम रहा हूँ। मेरी तो यही इच्छा है कि कोई ऐसा ताल्लुका मिले जहाँ स्वदेशीका पूरा-पूरा पालन होता हो, जहाँ स्त्री-पुरुष जेल जाने अथवा फाँसीपर चढ़ने के लिए तैयार हों। वहाँ जाकर मैं रहूँ और काम करूँ। मुझे ले जानेकी शर्तोमै ‘नवजीवन’ में दे चुका हूँ, तथापि यहाँ भी गिनाये देता हूँ:

१. स्वदेशीका सम्पूर्ण पालन करें।
२. ढेढ़ और भंगीके प्रति तिरस्कारके भावको छोड़ें और उन्हें सगे भाईके समान मानें।
३. हिन्दू-मुसलमान एक-दूसरेको सगे भाईके समान मानें।
४. सब यह समझ लें कि स्वराज्यके लिए शान्तिसे बढ़कर कोई उपाय नहीं है।

हममें शान्ति और हिम्मत आई है, इसीसे कुछ करनेकी शक्ति भी आ अली-भाइयोंके गिरफ्तार होनेपर हमने पागलपनका परिचय नहीं दिया इसीसे अली-भाई अदालतको मनमाना नाच नचा सके हैं। अगर हम होश गँवा बैठते तो यह नहीं हो सकता था। अब तो अगर सरकार यह कहे कि हम आपके व्यवहारको सहन नहीं कर सकते तो अली-भाई उनसे कहेंगे, ‘तब आप भारतसे चले जाइए।’ अदालत उनकी इस निर्भयताको पहचान गई है, इसीसे कुछ बोलती नहीं है। अगर हम पागल बनेंगे तो सरकार भी पागल बन जायेगी।

स्वराज्यके लिए तीन शर्तें अनिवार्य हैं:

१. शान्तिका पालन करना और लोगोंसे वैसा ही करने के लिए कहना ।
२. गरीबको दिलासा देना।
३. हिन्दू-मुस्लिम एकताके कोमल और नन्हेसे पौधेकी सार-सँभाल करना।

हिन्दू-मुस्लिम एक-दूसरेसे रूठ जायें, यह कैसे चल सकता है? मलाबारके सम्बन्ध में मेरे पास अनेक पत्र आते रहते हैं। एक व्यक्तिने लिखा है “हिन्दू-मुसलमान एक दिल नहीं हैं”। मेरी दृढ़ मान्यता है कि यह वाक्य केवल पत्र-लेखकके विचारोंका प्रतीक है। हिन्दू और मुसलमान दोनोंके दिल कोमल हैं। मुसलमान ऐसा न मानें कि वे और हिन्दू, बस ये दो पक्ष ही हैं। उनके बीच तीसरा खुदा भी खड़ा हुआ है। हिन्दू भी ऐसी श्रद्धा क्यों न रखें कि ईश्वर-भक्तको मुसलमान क्योंकर मारेंगे? पाखण्ड होनेपर ही मुसलमान मार सकता है। लेकिन अभी तो हिन्दू और मुसलमान दोनोंमें से कोई भी पाखण्ड नहीं छोड़ता, तथापि दोनों स्वराज्य प्राप्त करनेकी, खिलाफतका उद्धार करनेकी और गायको बचाने की बात कर रहे हैं। हिन्दुओंको गायको बचाना हो तो उन्हें अपना सिर मुसलमानकी गोदमें रख देना चाहिए। उस समय मुसलमानोंके दिलोंमें ईश्वर अवश्य वास करेगा और गायको बचायेगा। मुसलमानके मजहबमें गायको मारनेकी मनाही नहीं है, लेकिन ऐसे कार्यको न करना उनका फर्ज है जिससे पड़ोसीका मन दुःखता हो। हिन्दू-मुसलमान दोनों डरपोक बनकर नहीं बल्कि शुद्ध हृदय रखकर ही स्वराज्य प्राप्त कर सकेंगे, इतना ही नहीं बल्कि खिलाफत और गाय दोनोंको भी बचायेंगे।