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कितने पानीमें?

तक सत्ता सदस्योंके हाथमें ही है। और जब वह उन्हें समाप्त करेगी तब भी सत्ता सरकारके हाथमें तो नहीं जानेवाली है; वह नागरिकोंके हाथमें रहेगी। इसका नाम ही नागरिक सत्ता है। सदस्योंको जो सत्ता प्राप्त है वह सरकारकी दी हुई नहीं है, वह तो नागरिकोंकी दी हुई है।

जबतक नागरिक सजग नहीं हुए थे तबतक अधिकारी और सदस्य, दोनों ही अपने सामने नागरिकोंको कुछ गिनते ही न थे। वे नागरिकोंको जैसा नाच नचाना चाहते थे वैसा नचा सकते थे। अब जमाना बदल गया है। नागरिक अब उनके हाथकी कठपुतली नहीं हैं अब वे स्वयं सूत्रधार बन गये हैं; या, ऐसा कहें कि उन्हें बन जाना चाहिए। अतएव नगरपालिकाको समाप्त करके सरकार मालपुए नहीं उड़ा सकेगी।

क्या नागरिकोंमें इतनी जागृति आ गई है? क्या सदस्योंकी आवाज सचमुच नागरिकोंकी ही आवाज है? यह सब सामने आनेवाला है। सदस्योंको चाहिए कि वे नागरिकोंको सरकारकी विज्ञप्तिका आशय समझायें और यह भी सुझाएँ कि उनका कर्त्तव्य क्या है। अब केवल तीन बातें करनी हैं:

१. यदि सरकार अपने स्कूल खोले तो उसमें बच्चोंको न भेजा जाये।

२. सरकार नगरपालिकाको समाप्त करके अगर शहरकी सफाई आदिकी व्यवस्था अपने हाथ में लेना चाहे तो नागरिक लोग उसे कर न दें। वह बाहरसे पैसा लाकर भले शौचालयोंकी सफाई कराये।

३. यदि सरकार उसपर काबिज हो जाये तो शहरकी व्यवस्थाका कार्य हम अपने हाथ में ले लें।

हमारी लड़ाई सत्यकी लड़ाई है। इसलिए न तो सरकार हमारे साथ विश्वासघात करके टिक सकती है और न हम ही ढोंग करके सरकारको नीचा दिखा सकते हैं। यदि नागरिकोंमें जागृति आ गई है तो उनका नाश कोई नहीं कर सकता। अगर नहीं आई है तो यह काम सदस्य नहीं कर सकते। इसलिए अगर हम सरकारके प्रत्येक कदमसे नागरिकोंको परिचित करायें, उनके साथ सलाह-मशविरा करके आगे बढ़ते जायें तो हम देख सकेंगे और सरकारको बता भी सकेंगे कि उसमें कोई शक्ति नहीं है। हमारी निर्बलता ही सरकारकी शक्ति है। हमारी शक्ति अर्थात् इस बातका भान कि हम ही सरकार हैं और यह शक्ति यानी यह भान अहमदाबादकी अढ़ाई लाख, नडियादकी पैंतीस हजार और सुरतकी एक लाख आबादीकी बौद्धिक, हार्दिक, सामाजिक और राजनैतिक शिक्षासे फलित होगा। वे बुद्धिसे यह समझें कि किसका विश्वास करें और किसका न करें, हृदयसे यह जानें कि दुःखके पीछे सुख मिलता है, वे बुद्धि और हृदयसे जानें कि जिस तरह कुटुम्ब-व्यवहारको शुद्ध होना चाहिए वैसे ही समाज-व्यवहार भी शुद्ध होना चाहिए। इसलिए जिस तरह घर साफ होना चाहिए उसी तरह मुहल्ला और शहर भी साफ होना चाहिए। जैसे कुटुम्बमें किसी प्रकारका लड़ाई-झगड़ा नहीं होना चाहिए वैसे ही समाजमें भी लड़ाई-झगड़ा नहीं होना चाहिए; जैसे कुटुम्बके लिए वैसे ही समाजके लिए भी मरना सीखना चाहिए और इस तरह उन्हें