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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

समझना चाहिए कि अगर राजा-प्रजाके बीचका व्यवहार मलिन हो जाये अर्थात् वह ऊँच और नीचका, मालिक और नौकरका, सरदार और गुलामका हो जाये तो उस राजाका अर्थात् राज्यपद्धतिका त्याग करना चाहिए। यही बात हमारे अन्य सब तरहके व्यवहारके सम्बन्धमें भी लागू की जा सकती है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ३०-१०-१९२१
 

१५८. बोध बनाम अक्षरज्ञान

मेरी विषम स्थितिका कोई अन्त ही नहीं है। गोहेलके एक गरासिया[१] भाईने १२ अप्रैलको मुझे एक पत्र लिखा था। मैंने यह पत्र बचाकर रख लिया था। वह प्रकाशित करने के उद्देश्यसे नहीं लिखा गया था, किन्तु उसमें ऐसी बातोंकी चर्चा की गई है, जिनपर मुझे कार्रवाई करनी चाहिए। मेरी पूरी यात्रा के दौरान वह पत्र मेरे साथ-साथ घूमा है। मैं हर हफ्ते उसे देखता था और फिर यह कहकर छोड़ देता था कि बादमें देखूँगा। पत्र छोटे और सुन्दर अक्षरोंमें लिखा हुआ है लेकिन काफी लम्बा है। मुझे नौ पन्नोंका पत्र लिखनेवाले व्यक्तिको इस बातकी उम्मीद कदाचित् ही करनी चाहिए कि मैं उसे पढूँगा और उसपर विचार करूँगा। इस पत्रके आरम्भिक वाक्य मुझे अच्छे लगे इसीसे मैंने उसे सुरक्षित रखा और अब इसे पूरा पढ़ सका हूँ।

मेरी इच्छा है कि ये भाई और इनकी तरह लिखनेवाले दूसरे लोग मेरी स्थितिको ध्यानमें रखें। उन्हें इस नियमको याद रखना चाहिए कि जो लोग साफ-साफ अक्षरोंमें एक ही पन्नेपर अपने विचार पेश करेंगे उन्हें जल्दी उत्तर मिलेगा। अगर अच्छेसे-अच्छे विचारोंको एक ही वाक्यमें रखा जा सकता है तो हम अपनी इच्छाको एक ही वाक्यमें क्यों प्रकट नहीं कर सकते? जैसे-जैसे हम आगे बढ़ेंगे वैसे-वैसे हमें मालूम होगा कि हम जनकार्यको कमसे-कम शब्दोंका उपयोग करके भी चला सकते हैं। अंग्रेजीकी ‘सैनिक’ भाषा जितनी संक्षिप्त है उतनी संक्षिप्त भाषा मैंने कहीं नहीं देखी है। मैंने सैनिक आदेशोंको एक शब्दमें दिये जाते देखा है। वे जिन शब्दोंका उपयोग करते हैं उन्हें और छोटा रूप दे देते हैं। इसके सबल कारण है। जहाँ कार्य करना होता है वहाँ शब्द-जाल कमसे-कम होता है। “कमाडिंग ऑफिसर” को “कमांडिंग आफिसर” कहना गुनाह करने जैसा माना जाता है, पत्रोंमें उसे “सी० ओ०” ही लिखा जाता है।

मतलब यह कि जहाँ समझ है, बोध है, वहाँ शब्दोंकी―अक्षरज्ञानकी― बहुत कम जरूरत है। जिसने मोक्षको समझ लिया है, जिसने आत्माका साक्षात्कार कर लिया है, क्या वह ‘वेदों’का अध्ययन करेगा? जिसका पेट भरा हुआ है, उसे रबड़ीसे क्या सरोकार? जिसने हिमालयके दर्शन कर लिये हैं उसे हिमालयका मार्ग-निर्देशन

  1. सौराष्ट्रकी एक जाति।