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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

धर्मको नहीं पहचाना है इसीलिए ढेढ़ भाइयोंको प्रलोभन देकर फँसानेका प्रयत्न किया जाता है और इस रस्साकशीमें मुझे अनेक बार कलह होती दिखाई देती है। अतएव ये दो प्रसंग—सरकारी सन्देश और टाउनहालकी सभा—ऐसे हैं जिनसे अन्त्यज और अन्त्यजेतर हिन्दुओंको शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। अन्त्यजोंको ऐसे सन्देशों अथवा टाउनहालकी सभासे भ्रमित नहीं होना चाहिए। वे जिसे अपना अधिकार समझते हैं उसके लिए वे अवश्य ही हिन्दू समाजसे शिष्टतापूर्वक लड़ें किन्तु साथ ही हिन्दू समाजके नियमोंका पालन करें, मांसादिका—मुख्य रूपसे गोमांसका—त्याग करें, मैला काम करने के बाद शरीरको साफ करें और व्यभिचार आदि छोड़कर अपने अन्तःकरणको भी निर्मल बनायें। अन्य हिन्दू अन्त्यज भाइयोंके साथ प्यार करें, उन्हें कांग्रेस महासमिति के सदस्य बनायें, उनकी पीड़ाको समझें, उन्हें कोई भी कष्ट पहुँचाये तो उससे उनकी रक्षा करें, उन्हें सगे भाईके समान मानें और ऐसा न समझें कि उनका स्पर्श करना पाप है।

लेकिन एक विचारवान विवेकी हिन्दूने मेरे साथ बात करते हुए बताया कि हिन्दू धर्ममें स्पर्श-मात्रसे—प्राणके स्पन्दन-भरसे—भी सामनेके व्यक्तिपर असर होता है इसीसे उनके दूर रहनेका सुझाव दिया गया है। "ऐसे सूक्ष्म प्रभावसे अपने आपकी रक्षा करके ही हिन्दू लोग हजारों वर्षतक जीवित रह सके हैं और सुन्दर शास्त्रोंकी रचना कर सके हैं", ऐसा उन्होंने कहा।

एक दृष्टिसे विचार करनेपर यह बात सच है। मैलके स्पर्शसे, दुर्जनके संगसे हम मलिन होते हैं और सत्संगसे हम शुद्ध होते हैं, लेकिन यह सब तिरस्कारको पोषित करने के लिए नहीं लिखा है। यह तो केवल एकान्त-सेवनके लिए, संयमके लिए लिखा गया है। हमें अपनी आत्माको स्वच्छ करना है और यह हम अन्त्यज भाइयोंकी सेवा कर, उनकी उन्नति करके अधिक अच्छी तरह कर सकते हैं। सफाई करने के लिए हम गटरमें भी हाथ डालते हैं तथापि उसका स्पर्श हमारे लिए हानिकर नहीं है। इसके अलावा यदि हम दूसरोंके दोषोंका विचार करके सबसे अलग रहनेका प्रयत्न करते हैं तो हम निरे पाखण्डी बन जाते हैं क्योंकि दूसरोंके दोषका वर्णन करते समय हम अपनेको इतना सम्पूर्ण मान लेते हैं कि हमारे लिए कुछ करने को नहीं रह जाता अर्थात् हम नीचसे-नीच बन जाते हैं। ढेढ़-भंगी तो हमारी आत्मामें ही पड़े हुए हैं, हमें उनका त्याग करना है, उनसे स्पर्श कर जानेपर हमें नहाना है। बाहरके ढेढ़-भंगियोंमें मैला साफ करने के बावजूद अनेक ऐसे सरल, ऐसे सज्जन और नीतिमान हैं कि वे पूजा करने लायक हैं। ढेढ़-भंगीको दुर्गुणोंका और अन्य वर्णोंको सद्गुणोंका कोई ठेका नहीं मिला हुआ है। इसलिए हिन्दू शास्त्रोंमें निहित कुछेक विचारों और वाक्योंको बिना समझे केवल उनका अक्षरार्थ पालन करके पतित न बनें, इस बातकी हमें खूब सावधानी रखनी है।

स्वदेशी और ब्रह्मचर्य

एक मित्र लिखते हैं कि देशमें स्वदेशीका जोर तो बढ़ता जाता है लेकिन ब्रह्मचर्यके पालनमें कोई वृद्धि दिखाई नहीं देती। जबतक स्त्री-पुरुष अपने मनपर अंकुश